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सिनेमालोक : चीन के आमिर चाचा

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सिनेमालोक चीन के आमिर चाचा – अजय ब्रह्मात्‍मज चीन के पंइचिंग शहर में बस गए भारतीय विनोद चंदोला ने पिछले हफ्ते अपने बेटे हिंमांग का एक वीडियो भेजा। हिमांग ने चीन में पिछले दिनों रिलीज हुई ' सीक्रेट सुपरस्‍टार ' के लोकप्रिय गीत ' नचदी फिरा ' का कवर वर्सन गाया है। हिमांग को पिता से हिंदी की समझ मिली है। उनकी मां दक्षिण कोरिया की हैं। उन्‍हं चीनी , कोरियाई और थोड़ी हिंदी आती है। पेइचिंग में रहने की वजह से वे आम तौर पर चीनी बोलते हैं। वे चीनी और कोरियाई में गीत गाते हैं। पहली बार पिता की मदद से उच्‍चरण ठीक कर उन्‍होंने हिंदी में गाना गाया है। उन्‍होंने बताया कि वे भी आमिर खान की लोकप्रियता के प्रभाव में हैं। पिता की तरफ से भारतीय होने के नाते उनके दोस्‍त भी हिंदी गानों की फरमाईश कर रहे थे। हिंमांग चीन के उन युवकों के एक प्रतिनिधि हैं , जिन्‍हें ' आमिर चाचा ' बहुत पसंद हैं। सभी जानते हैं कि आमिर खान की फिल्‍में चीन में बहुत ज्‍यादा पसंद की जा रही हैं। उनके कारोबार ने हिंदी फिल्‍मों के लिए नया बाजार खोल दिया है। चीन में आमिर खान की लोकप्रियता और प्रभाव

श्रीदेवी की मौत : सत्ता का तमाशा

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श्री -चंद्र प्रकाश झा लोकप्रिय फिल्म अदाकारा श्रीदेवी 24 फरवरी को दुबई में गुजर गईं। वह एक परिजन के ब्याह में शरीक होने दुबई गई थीं. वहां एक बड़े होटल में ठहरी हुई थीं . उसी होटल के अपने कमरे के बाथरूम के बाथटब में कथित तौर पर डूब जाने से उनकी मौत हो गई . किसी ने कहा कि वह शराब के नशे में थीं. किसी ने कहा कि उनकी मौत बाथटब में ही दिल का दौरा पड़ने से हुई। पूर्व केंद्रीय मंत्री और अभी भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सदस्य सब्रमणियम स्वामी ने शगूफा छोड़ा कि उनकी ह्त्या की  गई होगी। किसी  की भी मौत की खबर कष्टकारी होती है , ख़ास कर तब जब कि उनका ख़ास व्यक्तित्व हो। मृत्यु के समय श्रीदेवी की उम्र महज 55 वर्ष थी. उनका पूरा जीवन बड़ा ही संघर्षकारी था .उन्होंने सिर्फ चार वर्ष की आयु में 1967 में तमिल फिल्म , ' कंदन करूनेई ' में बाल- कलाकार के रूप में अभिनय शुरू किया था. उन्होंने   2017 में अपनी 300 वीं फिल्म , मॉम में अभिनय किया था. वह भारत की संभवतः एकमेव अभिनेत्री  रहीं जिन्हें बॉलीवुड की हिन्दुस्तानी फिल्मों के अलावा दक्षिण भारत की सभी भाषाओं , तमिल , तेलुगु , कन्न

फिल्‍म समीक्षा : हिचकी

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फिल्‍म समीक्षा रानी की मुनासिब कोशिश हिचकी -अजय ब्रह्मात्‍मज शुक्रिया रानी मुखर्जी। आप अभी जिस ओहदे और शौकत में हैं , वहां आप के लिए किसी भी विषय पर फिल्‍म बनाई जा सकती है। देश के धुरंधर फिल्‍मकार आप के लिए भूमिकाएं लिख सकते हैं। फिर भी आप ने ‘ हिचकी ’ चुनी। पूरी तल्‍लीनता के साथ उसमें काम किया और एक मुश्किल विषय को दर्शकों के लिए पेश किया। कहा जा सकता है कि आप की वजह से यह ‘ हिचकी ’ बन सकी। मुनीष शर्मा और सिद्धार्थ पी मल्‍होत्रा की यह कोशिश देखने लायक है। ‘ हिचकी ’ की कहानी दो स्‍तर पर चलती है। एक स्‍तर पर तो यह नैना माथुर(रानी मुखर्जी) की कहानी है। दूसरे स्‍तर पर यह उन उदंड किशोरों की भी कहानी है , जो सभ्‍य समाज में अनके वंचनाओं के कारण अवांछित हैं।   नैना माथुर टॉरेट सिनड्राम से ग्रस्‍त हैं। इसमें खूब हिचकियां आती हैं और बार-बार आती हैं। इस सिंड्रोम की वजह से उन्‍हें 12 स्‍कूल बदलने पड़े हैं। स्‍नातक होने के बाद पिछले पांच सालों मेंउन्‍हें 18 बार नौक‍रियों से रिजेक्‍ट किया गया है। उन्‍होंने ठान लिया है कि उन्‍हें टीचर ही बनना है। स्क्रिप्‍ट का विधान ऐसा बनता है क

दरअसल : हिंदी समाज और मिजाज की ‘अनारकली....’

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दरअसल... हिंदी समाज और मिजाज की ‘ अनारकली.... ’ -अजय ब्रह्मात्‍मज एक साल हो गया। पिछले साल 24 मार्च को अविनाश दास की ‘ अनारकली ऑफ आरा ’ रिलीज हुई थी। प्रिंट और टीवी पत्रकारिता की लंबी सफल पारी के दौरान िही अविनाश दास ने तय कर लिया था कि वह फिल्‍म निर्देशन में हाथ आजमाएंगे। जब आप सुनिश्चित और पूरी तरह अाश्‍वस्‍त न हों तो इसे आजमाना ही कहते हैं। उनके मित्रों और रिश्‍तेदारों के लिए उनका यह खयाल और फैसला चौंकाने वाला था कि उम्र के इस पड़ाव पर नई कोशिश की घुप्‍प सुरंग में घुसना करिअर और जिंदगी को दांव पर लगाना है। सुरंग कितनी लंबी और सिहरनों से भरी होगी और उस पार रोशनी में खुलेगी या गुफा में तब्‍दील होकर गहरे अंधेरे में खो जाएगी। कुछ भी नहीं पता था , लेकिन अविनाश के लिए तो फैज अहमद फैज की पंक्तियां दीपस्‍तंभ थीं... यह बाजी इश्क की बाजी है जो चाहे लगा दो डर कैसा गर जीत गये तो कहना क्या , हारे भी तो बाजी मात नही। फिल्‍मी फैशन में अपनी मेहनत और ल्रगन को कहीं अविनाश दास भी भाग्‍य ना समझते हों। सच्‍चाई यह है कि जीवन के लंबे अनुभव , समाज की गहरी समझदारी और ईमानदार तैयारी के

सिनेमालोक : जवार और जेएनयू के नरेन्‍द्र झा

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सिनेमालोक जवार और जेएनयू के नरेन्‍द्र झा -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले हफ्ते टीवी और फिल्‍मों में एक्टिंग से अपनी पहचान मजबूत कर रहे कलाकार नरेन्‍द्र झा का आकस्मिक निधन हो गया। अभी तक उनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। रविवार की शाम मुंबई में उनकी स्‍मृति में आयोजित शोक सभा में उनके परिचित,मित्र और रिश्‍तेदार उन्‍हें अलग-अलग नामों से याद कर रहे थे। किसी के लिए वे बड़े भाई,किसी के लिए चाचा,किसी के गार्जियन तो किसी के गॉड फादर...। परिजनों के लिए वे नरेन,फूल बाबू और कन्‍हैया थे। उत्‍तर भारत के मध्‍यवर्गीय परिवारों में हर व्‍यक्ति को अनेक नामों से पुकारा और दुलारा जाता है। हिंदी फिल्‍मों में आए उत्‍तर भारत के कलाकार अपने सारे संबंधों का निर्वाह करते हैं। समृद्ध और मशहूर होने की वजह से उनकी जिम्‍मेदारी बढ़ जाती है। वे सभी के अपने हो जाते हैं। मामी के चचेरे भाई की साली के देवर का बेटा भी बड़े ह क से भैया कहते हुए उनसे उम्‍मीद रख सकता है। उत्‍तर भारत से आए कलाकारों के इर्द-गिर्द ऐसे रिश्‍तेदारों की भरमार होती है। उन्‍हें इन कलाकारों से पैसे,नौकरी और मौके सभी कुछ चाहिए होता है।