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दरअसल : फिल्‍म स्‍टार्स के फैशन ब्रांड

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दरअसल... फिल्‍म स्‍टारों के फैशन ब्रांड -अजय ब्रह्मात्‍मज दो दिन पहले सोनम कपूर ने अपनी बहन रिया कपूर के साथ मिल कर खुद का नया फैशन ब्रांड ‘ रिसोन ’  आरंभ किया। सारे मशहूर ब्रांड सोनम कपूर के साथ मिल कर फैशन का नया ब्रांड शुरू करना चाह रहे थे। सोनम ने मौके की जरूरत को समझा और बहन रिया के साथ इस वंचर की शुरूआत कर दी। सोनम की स्‍टायलिंग रिया कपूर ही करती हैं। दोनों बहनों की कोशिश है कि शहरी मिडिल क्‍लास की लड़कियों को किफायती कीमत में फैशनेबल कपड़े मिल जाएं। रिया और सोनम के पहले कई फिल्‍म स्‍टार अपने फैशन ब्रांड ला चुके हैं। वे सफल भी हैं और निश्चित कमाई कर रहे हैं। इनमें से सबसे अधिक कामयाबी सलमान खान को मिली है। उनका ‘ बीइंग ह्यूमन ’ ब्रांड अब प्रदेशों की राजधानियों से आगे जिला शहरों तक में खुल रहा है। भारतीय समाज में फिल्‍म स्‍टार ही फैशन आइकॉन माने जाते हैं। समाज के अप्न्‍य क्षेत्रों की तरह फैशन जगत में भी उनकी तूती बोलती है,क्‍योंकि उनके नाम के साथ उनकी लोकप्रियता जुड़ी होती है। फिल्‍मों और फिल्‍म स्‍टारों से ही हमारे देश के युवा फैशन सीखते हैं। किसी फिल्‍म के...

सात सवाल : पलट’ मोमेंट होता है प्रेम में -सुशांत सिंह राजपूत

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सात सवाल ‘ पलट ’ मोमेंट होता है प्रेम में सुशांत सिंह राजपूत सुशांत सिंह राजपूत ने टीवी से फिल्‍मों में कदम रखा। अपनी फिल्‍मों के चुनाव और अभिनय से वे खास मुकाम बना चुके हैं। उनकी ‘ राब्‍ता ’ जल्‍दी ही रिलीज होगी,जिसे दिनेश विजन ने निर्देशित किया है। -प्रेम क्‍या है आप के लिए ? 0 प्रेम से ही सेंस बनता है हर चीज का। जिंदगी के लिए जरूरी सारी चीजें प्रेम से जुड़ कर ही सेंस बनाती हैं। -प्रेम का पहला एहसास कब हुआ था ? 0 बचपन में अकेला नहीं सो पाता था। मां नहीं होती थी दो रातों तक नहीं सो पाता था। मेरे लिए वही प्रेम का पहला एहसास था। - रामांस की अनुभूति कब हुई 0 सच कहूं तो चौथे क्‍लास में। अपनी क्‍लास टीचर से मेरा एकतरफा रोमांस हो गया था। वह मुझे बहुत अच्‍छी लगती थीं। उन्‍हें भी इस बात का अंदाजा था। -हिंदी फिल्‍मों ने आप को प्रेम के बारे में क्‍या सिखाया और बताया ? 0लड़कियों को चार्म कैसे करते हें। मेरे पास कोई रेफरेंस नहीं था। मुझे एकदम याद है कि ‘ दिलवाले दुल्‍‍हनिया ले जाएंगे ’ देखने के बाद लगा कि लड़का तो ऐसा ही होना चाहिए। उसके बाद ‘ कुछ कुछ होता है ’ ...

खुशमिजाज मां रीमा लागू

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खुशमिजाज मां रीमा लागू -अजय ब्रह्मात्‍मज उनकी उम्र अभी 59 थी। हमेशा के लिए आंखें बंद करने की यह उम्र नहीं होती। न कोई बीमारी और न कोई आसन्‍न दुख...बस,सीने में दर्द हुआ। अस्‍पताल पहुंची और दो-तीन घेटों के अंदर त्रहैं ’ से ‘ थीं ’ हो गईं। जीवन क्षणभंगुर है। अगले पल क्‍या हो,नहीं मालूम। हिंदी फिल्‍मों की पसंदीदा और खुशमिजाज मां रीमा लागू अब नहीं रहीं। सभी अवाक हैं,क्‍योंकि कोई इस खबर के लिए तैयार नहीं था। हिंदी फिल्‍मों में वह जिन सितारों की मां बनती रहीं,उनसे उनकी उम्र 7 से 10 साल ही अधिक रही होगी। फिर भी पर्दे पर उम्र का फासला और वात्‍सल्‍य दिखता था। वह मां लगती थीं। थिएटर एक्‍टर मंदाकनी भड़भड़े की बेटी रीमा ने थिएटर से ही करिअर आरंभ किया। सबसे पहले 1988 में मंसूर खान ने ‘ कयामत से कयामत तक ’ में उन्‍हें मां की भूमिका दी। उसके बाद वह अरूणा राजे की ‘ रिहाई ’ में दिखीं। इस विवादास्‍पद किरदार में से वह चर्चा में रही,लेकिन अगले ही साल ‘ मैंने प्‍यार किया ’ में सलमान खान की मां बनते ही वह हर-हमेशा के लिए मां के रूप में हिंदी फिल्‍मों का फिक्‍स किरदार हो गईं। उन्‍हो...

मैंने सुनी दिल की आवाज़ : इरफान

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मैंने सुनी दिल की आवाज़ : इरफान ‘हिंदी मीडियम’ ऊपरी तौर पर भाषाई विभेद की चीज लगे, पर यह अन्य पहलुओं की भी बातें करता है। इसमें नायक की भूमिका निभा रहे इरफान इसकी अहमियत से वाकिफ कराते हैं।     -अजय ब्रह्मात्‍मज -अभी मैं जिस इरफान से बात कर रहा हूं, वो एक्टर इरफान है, स्टार इरफान या वो इरफान जिसे हम सालों से जानते हैं। 0 अक्सर जब हम में बदलाव आते हैं तो लोगों को लगने लगता है कि बंदा बदल सा गया है। इससे मुझे दिक्कत होती है। तब्‍दीली अपरिहार्य है। हरेक का सफर यही होता है कि आप कल वैसा न रहें, जो कल थे। मैं अब क्या हूं, वह मुझे नहीं मालूम। अदाकारी मेरा शौक था। तभी मैंने इसमें कदम रखा। यह मुझे मेरे पागलपन से बचा कर रखता है। बाकी मीडिया ने मुझे किस उपाधि से नवाजा है, यह उनका प्यार है। यह उपाधि आज तो मुझ पर लागू हो रही है, चार साल बाद ऐसा नहीं होगा। मुझे इन उपाधियों व परिभाषाओं से दिक्कत है। असल में यह हमारी असुरक्षा की उपज है। इससे हम खुद को तसल्ली दे लेते हैं कि हम विषय विशेष या खुद के बारे में सब कुछ जान चुके हैं। मुझे असुरक्षाओं से कोई प्रॉब्लम नहीं है। इंसा...

फिल्‍म समीक्षा : हिंदी medium

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फिल्‍म रिव्‍यू zaruri फिल्‍म हिंदी medium -अजय ब्रह्मात्‍मज साकेत चौधरी निर्देशित ‘ हिंदी मीडियम ’ एक अनिवार्य फिल्‍म है। मध्‍यवर्ग की विसंगतियों को छूती इस फिल्‍म के विषय से सभी वाकिफ हैं,लेकिन कोई इस पर बातें नहीं करता। आजादी के बाद भी देश की भाषा समस्‍या समाप्‍त नहीं हुई है। दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा का साक्षात उदाहरण है भारतीय समाज में अंग्रेजी का बढ़ता वर्चस्‍व। अंग्रेजी की हिमायत करने वालों के पास अनेक बेबुनियादी तर्क हैं। हिंदी के खिलाफ अन्‍य भाषाओं की असुरक्षा अंग्रेजी का मारक अस्‍त्र है। अंग्रेजी चलती रहे। हिंदी लागू न हो। अब तो उत्‍तर भारत के हिंदी प्रदेशों में भी अंग्रेजी फन काढ़े खड़ी है। दुकानों के साइन बोर्ड और गलियों के नाम अंग्रेजी में होने लगे हैं। इंग्लिश पब्लिक स्‍कूलों के अहाते बड़ होते जा रहे हैं और हिंदी मीडियम सरकारी स्‍कूल सिमटते जा रहे हैं। हर कोई अपने बच्‍चे को इंग्लिश मीडियम में डालना चाहता है। सर‍कार और समाज के पास स्‍पष्‍ट और कारगर शिक्षा व भाषा नीति नहीं है। खुद हिंदी फिल्‍मों का सारा कार्य व्‍यापपार मुख्‍य रूप से अंग्रेजी में होन...

रोज़ाना : इस्‍तेमाल होते फिल्‍म स्‍टार

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रोज़ाना इस्‍तेमाल होते फिल्‍म स्‍टार -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों हालिया रिलीज फिल्‍म के एक स्‍टार मिले। थोड़े थके और नाराज। उत्‍त्‍र भारत के किसी शहर से लौटे थे। फिल्‍म की पीआर और मार्केटिंग टीम उन्‍हें वहां ले गई थी। उद्देश्‍य था कि मीडिया के कुछ लोगों से मिलने के साथ मॉल और स्‍कूल के इवेंट में शामिल हो लेंगे। अगले दिन अखबार और चैनलों पर खबरें आ जाएंगी। इन दिनों ज्‍यादातर फिल्‍मों के प्रचार की मीडिया प्‍लानिंग ऐसे ही हो रही है। किसी को नहीं मालूक कि इस प्रकार के प्रचार और उपस्थिति फिल्‍मों को क्‍या फायदा होता है ? फिल्‍म स्‍आर को देखने आई भीड़ दर्शकों में तब्‍दील होती है या नहीं ?   मेरा मानना है कि इसमें कयास लगाने की कोई जरूरत ही नहीं है। इवेंट में मौजूद भीड़ और सिनेमा के टिकट खरीदे दर्शकों का जोड़-घटाव कर लें तो आंकड़े सामने आ जाएंगे। उक्‍त स्‍टार की भी यही जिज्ञासा थी कि हम जो शहर-दर-शहर दौड़ते हैं,क्‍या उससे फिल्‍म को कोई लाभ होता है ? स्‍पष्‍ट जवाब किसी के पास नहीं है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री प्रचार के नए तौर-तरीके खोजती रहती है। पीआर कंपनियों की सक्रिय...

रोज़ाना : चीन में ‘दंगल’ के 420 करोड़

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रोज़ाना चीन में ‘ दंगल ’ के 420 करोड़ -अजय ब्रह्मात्‍मज 5 मई 2017 को नितेश तिवारी निर्देशित और आमिर खान अभिनीत ‘ दंगल ’ चीन में रिलीज हुई। ‘ दंगल ’ भारत की पहली फिल्‍म है,जो इतने व्‍यापक स्‍तर पर चीन में रिलीज हुई है। 9000 से अधिक स्‍क्रीन में एक साथ चल रही ‘ दंगल ’ के लिए चीन के दर्शक दीवाने हो गए हैं। चीनी भाषा में इस फिल्‍म का नाम ‘ श्‍वाएच्‍याओ पा ! पापा ’ रखा गया है,जिसका सीधा अर्थ होगा ‘ कुश्‍ती करें,पापा ’ । ‘ दंगल ’ पसंद आने की वजह उसका विषय और बाप-बेटी के रिश्‍तों का इमोशनल कनेक्‍शन है। इस फिल्‍म के प्रति दर्शकों की रुचि का अंदाजा इसी तथ्‍य से लगाया जा सकता है कि पिछले 11 दिनों में ‘ दंगल ’ ने चीन में 400 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन किया है। ट्रेड पंडित मान रहे हैं कि 500 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन होगा। भारतीय फिल्‍मों का एक नया बाजार पड़ोस में तैयार हो गया है। पिछले कुछ सालों में भारतीय फिल्‍मों ने चीन में अच्‍छा कारोबार किया है। टॉप बिजनेस कर चुकी छह फिल्‍मों में से चार आमिर खान की हैं। चीनी अखबारों के मुताबिक पिछले महीने जब आमिर खान पेइचिंग इंटरनेशनल ...

रोज़ाना : 'सिमरन' किरदार से 'सिमरन' फ़िल्म तक कंगना

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'सिमरन' किरदार से 'सिमरन' फ़िल्म तक कंगना कंगना रनोट फिर से सिमरन के किरदार के रूप में आ रही हैं। हंसल मेहता की की ताजा फ़िल्म में वह शीर्षक किरदार निभा रही हैं। कंगना के प्रशंसकों और और फ़िल्मप्रेमियों को याद होगा कि उनकी पहली फ़िल्म 'गैंगस्टर' में भी उनका नाम सिमरन था। अनुराग बसु निर्देशित इस फ़िल्म से कंगना ने जोरदार दस्तक दी थी और हिंदी फिल्मों में खास पहचान के साथ प्रवेश किया था। कंगना सफलता की अद्भुत कहानी हैं। गिरती-संभालती वह आज जिस मुकाम पर हैं,वह खुद में प्रेरक कहानी है। मुमकिन है कल कोई उनके इस सफर पर बायोपिक बनाए की बात सोचे। 'शाहिद' और 'अलीगढ़' जैसी चर्चित फिल्में बना चुके हंसल मेहता के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म के पहले टीज़र ने झलक दी है कि हम कंगना को फिर से एक दमदार किरदार में देखेंगे। 'तनु वेड्स मनु' के दोनों भाग और 'क्वीन' की रवानगी और ऊर्जा का एहसास देता टीज़र भरोसा दे रहा है कि किरदार और कंगना का फिर से मेल हुआ है। हंसल मेहता संवेदनशील फिल्मकार हैं। वे अपने नायकों को भावाभिव्यक्ति के दृश्य ...

सात सवाल : कृति सैनन

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कृति सैनन -अजय ब्रह्मात्‍मज सात सवाल -यहां आने से पहले हिंदी फिल्‍मों के प्रति क्‍या परसेप्‍शन था ? 0 बिल्‍कुल आम दर्शकों की तरह ही मेरा परसेप्‍शन था। मीडिया के जरिए जो पढ़ती और सुनती थी,वही जानती थी। इसका ग्‍लैमर आकर्षित करता था। लगता था कि स्‍टारों के लिए सब मजेदार और आसान होगा। बस,डांस करना है। -परसेप्‍शन क्‍या बदला ? 0 आने के बाद पता चला कि बहुत मेहनत है। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के हर डिपार्टमेंट में काम करनेवालों के लिए रेसपेक्‍ट बढ़ गई है। एक छोटे से सीन के लिए भी सौ चीजें सोचनी पड़ती हैं। कई बार दर्शक उन पर ध्‍यान भी नहीं देते,लेकिन वही सिंक में न हो तो खटकेगा। - कहते हैं यह टीमवर्क है ? 0 बिल्‍कुल। हर डिपार्टमेंट मिल कर ही फिल्‍म पूरी करता है। फिल्‍मों में काम करने के बाद ही यह सब पता चला। मुझे लगता है कि क्रिटिक और दर्शकों को भी सभी के काम पर गौर करना चाहिए। - हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री की क्‍या खासियत है ? 0 विविधता है। हर तरह की प्रतिभाएं हैं। फिल्‍मों के विषयों की विविधता तो गजब की है। मैं देखती हूं कि अलग-अलग कारणों से सभी जुड़े हैं। एक बात समान है क...

फिल्‍म समीक्षा : मेरी प्‍यारी बिंदु

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फिल्‍म रिव्‍यू परायी बिंदु मेरी प्‍यारी बिंदु थिएटर से निकलते समय कानों में आवाज आई...फिल्‍म का नाम तो ‘ मेरी परायी बिंदु ’ होना चाहिए था। बचपन से बिंदु के प्रति आसक्‍त अभिमन्‍यु फिल्‍म के खत्‍म होने तक प्रेमव्‍यूह को नहीं भेद पाता। जिंदगी में आगे बढ़ते और कामयाब होते हुए वह बार-बार बिंदु के पास लौटता है। बिंदु के मिसेज नायर हो जाने के बाद भी उसकी आसक्ति नहीं टूटती। ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ की कहानी लट्टू की तरह एक ही जगह नाचती रहती है। फिर भी बिंदु उसे नहीं मिल पाती। इन दिनों करण जौहर के प्रभाव में युवा लेखक और फिल्‍मकार प्‍यार और दोस्‍ती का फर्क और एहसास समझने-समझाने में लगे हैं। संबंध में अनिर्णय की स्थिति और कमिटमेंट का भय उन्‍हें दोस्‍ती की सीमा पार कर प्‍यार तक आने ही नहीं देता है। प्‍यार का इजहार करने में उन्‍हें पहले के प्रेमियों की तरह संकोच नहीं होता,लेकिन प्‍यार और शादी के बाद के समर्पण और समायोजन के बारे में सोच कर युवा डर जाते हैं। ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ में यह डर नायिका के साथ चिपका हुआ है। दो कदम आगे बढ़ने के बाद सात फेरे लेने से पहले उसका डर तारी होता...