श्रद्धांजलि : रवींद्र जैन
-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों में गीत-संगीत के क्षेत्र में अपनी मधुरता के लिए मशहूर रवींद्र जैन की वाणी भी मधुर थी। चंद मुलाकातों में हुई बातचीत में ही वे आवाज के आरोह-अवरोह से सभी की पृथक पहचान कर लेते थे। परिचितों के बीच उन्हें संबोधित करते हुए उनकी आवाज की खनक से संबंध की सांद्रता झलकती थी। इनकी बोली और बातचीत में लय थी। बोलते थे तो मानो कोई नदी निश्चित पगवाह से अविरल बह रही हो। सात भाई-बहनों में से तीसरे रवींद्र जैन जन्म से ही दृष्टि बाधित थे। उनके मन की आंखें खुली थीं। बचपन से ही संगीत और गायकी को शौक रहा। पहले कोलकाता और फिर मुंबई में वे फिल्मों के संपर्क में आए। उन्होंने 1972 से ही संगीत रचना आरंभ कर दी थीं। ‘ कांच और हीरा ’ उनकी पहली फिल्म थीं। 1973 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘ सौदागर ’ से उन्हें ख्याति मिली।इस फिल्म के सारे गीत लोकप्रिय हुए थे। रवींद्र जैन ने आरंभ में राजश्री की फिल्मों के लिए गीत-संगीत तैयार किए। राजश्री की फिल्म ‘ अंखियों के झरोखे से ’ के शीर्षक गीत ने उन्हें बड़ी लोकप्रियता दी। राजश्री स...