Posts

इमरान खान से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

रियलिस्टिक और नैचुरल है जाने तू ....- इमरान खान क्या आप पहली रिलीज के लिए तैयार हैं? मुझे नहीं लगता कि ऐसे तैयार होना आसान है, हम ये नहीं सोचते हैं कि आगे जाकर क्या होगा। हमने कोशिश की है कि अच्छी फिल्म बन सके, मैंने ईमानदारी से काम किया है ....आगे क्या होगा किसी को पता नहीं। लेकिन कुछ तो तैयारी रही होगी। बाहर इतना कम्पिटीशन है। आप पहुंचेंगे, बहुत सारे लोग पहले से ही मैदान में खड़े हैं? कम्पिटीशन के बारे में आपको सोचना नहीं चाहिए। आपको अपना काम करना है। अगर मैं बैठ कर सोचूंगा कि बाकी एक्टर क्या कर रहे हैं, कैसी फिल्में कर रहे हैं। ये कॉमेडी फिल्म कर रहा है, ये रोमांटिक फिल्म कर रहा है तो मैं अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाऊंगा। मुझे अपना काम करना है, मुझे अपना काम देखना है। मुझे सोचना है कि मुझे कैसी फिल्में अच्छी लगती हैं। मुझे कैसी स्क्रिप्ट पसंद हैं। और ये काम मैं कितने अच्छे तरीके से कर सकता हूं। कभी किसी को देख जलना नहीं चाहिए, इंस्पायर होना चाहिए। किसी और को देखकर अपना काम नहीं करना चाहिए। मेरे खयाल में कम्पिटीशन के बारे में सोचना नहीं चाहिए। कैसे फैसला लिया कि जाने तू या जाने ना ही...

बॉक्स ऑफिस:०४.०७.२००८

थोड़ा ट्रैजिक ही रहा कारोबार पूरे छह महीने बीत गए। बॉक्स ऑफिस पर कोई खुशहाली नहीं दिखी। हर फिल्म की रिलीज के समय खुशहाली की उम्मीद के बादल उमड़े, घिरे और गरजे भी, लेकिन बूंदाबादी ही होकर रह गई। शुरू की छमाही में जोधा अकबर, रेस,जन्नत और सरकार राज का ही ठीक-ठाक कारोबार रहा। वैसे भी हिंदी फिल्मों की कामयाबी का प्रतिशत पांच ही रहता है। इस बार इसमें भी कमी आने की आशंका है। पिछले हफ्ते रिलीज फिल्मों में थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक कुणाल कोहली की पहली होम प्रोडक्शन होने के साथ यशराज की भी फिल्म थी। सैफ अली खान और रानी मुखर्जी की जोड़ी के साथ चार-चार बच्चे ़ ़ ़ ऐसा लगा था कि इस फिल्म को बच्चे लपक लेंगे। थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक का कलेक्शन वास्तव में थोड़ा ट्रैजिक ही रहा। पच्चीस प्रतिशत का कलेक्शन सैफ और रानी की फिल्म के लिए संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। इस फिल्म के नाम से मिलती-जुलती फिल्म थोड़ी लाइफ थोड़ा मैजिक तो ठीक से सिनेमाघरों तक में नहीं पहुंच सकी। कहा जा रहा है कि यशराज फिल्म्स ने कोई दांव खेला। दूसरी फिल्म वाया दार्जीलिंग सीमित प्रिंट के साथ रिलीज हुई थी। एनएफडीसी की इस फिल्म का हश्र उनकी अत...

प्रियंका चोपड़ा, बारिश और एक मुलाकात

इन दिनों अंतरंग बातचीत तो छोड़िए, अंतरंग मुलाकातें भी नहीं हो पातीं। एक्टर व्यस्त हैं और फिल्म पत्रकार जल्दी से जल्दी अखबारों की जगह भरने में सिर्फ कानों और आंखों का सहारा ले रहे हैं। दिल और दिमाग अपने कोनों में दुबके पड़े हैं। आश्चर्य है कि इस स्थिति से सभी खुश हैं... अखबार के मालिक, संपादक, पत्रकार, पाठक और फिल्मी हस्तियां... इस स्थिति की परिस्थिति पर फिर कभी, फिलहाल चवन्नी की मुलाकात पिछले दिनों प्रियंका चोपड़ा से हुई। चवन्नी के पाठकों के लिए विशेष रूप से इस मुलाकात का विवरण... प्रियंका चोपड़ा से अजय ब्रह्मात्मज मिलने गए थे। चूंकि चवन्नी हमेशा उनके साथ रहता है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इस इंटरव्यू के लिए मौजूद था। चवन्नी ने अजय से कहा भी कि गाड़ी निकाल लो। बारिश का दिन है। अपनी गाड़ी रहेगी तो गीले नहीं होंगे और भीगी हुई बातों से आप भी बचे रहोगे, लेकिन अजय को प्रियंका चोपड़ा के इंटरव्यू के बाद स्वानंद किरकिरे से मिलने के लिए बांद्रा भी जाना था, इसलिए गाड़ी निकालना मुनासिब नहीं था। बारिश में अनजानी सड़कों के गड्ढों की जानकारी नहीं रहती और फिर मुंबई में पार्किंग इतनी बड़ी समस...

प्रोड्यूसर आमिर खान काफी एक्टिव हो गए हैं

मैं जाने तू ... का पहला निर्माता नहीं हूं। इसे पहले जामू सुगंध बना रहे थे। मुझे मालूम था कि इमरान अब्बास की फिल्म कर रहे हैं। उस समय मैंने इमरान से केवल इतना ही पूछा था कि क्या आपको अब्बास और फिल्म की कहानी पसंद है? उन्होंने हां कहा तो मैंने कहा कि जरूर करो। उस वक्त जामू सुगंध आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। उन्होंने तीन फिल्में की घोषणा की थी। दो की शूटिंग भी आरंभ हो गई थी, लेकिन वे उन्हें बना नहीं पाए। जाने तू ... अभी शुरू नहीं हुई थी। तब अब्बास मेरे पास प्रोजेक्ट लेकर आए और पूछा कि क्या आप इसे प्रोडयूस करना चाहेंगे। मैंने कहानी सुनी तो कहानी अच्छी लगी। तब तक अब्बास फिल्म के चार गाने रहमान के साथ रिकॉर्ड कर चुके थे। वे गाने भी मुझे पसंद आए। फिर मैंने अब्बास से कहा कि पांच-छह सीन शूट कर के दिखाओ। उन्होंने कुछ सीन शूट किए। वे भी मुझे पसंद आए। मुझे विश्वास हुआ कि अब्बास फिल्म कर पाएंगे। फिर मैंने इमरान का स्क्रीन टेस्ट देखा। हर तरह से संतुष्ट हो जाने पर मैंने फिल्म प्रोडयूस करने का फैसला किया। जाने तू ... बनाने का मेरा फैसला पूरी तरह से गैरभावनात्मक था। ऐसा नहीं था कि इमरान के लिए फिल्म बना...

किरण राव ने बनायी अलग प्रोडक्शन कंपनी

आमिर खान की पत्नी किरण राव ने सिनेमा 73 नाम से अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी बनायी है। वह अपनी पहली फिल्म इसी बैनर तले बनाएंगी। निर्देशन में आशुतोष गोवारीकर की सहायक रह चुकी किरण राव आमिर खान से शादी करने के बाद से सुर्खियों में रही हैं। आमिर खान से उनकी शादी के बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि वह आमिर खान प्रोडक्शन के लिए किसी फिल्म का निर्देशन कर सकती हैं, जिसमें स्वाभाविक रूप से आमिर खान होंगे। आमिर खान ने इन सभी कयासों पर विराम लगाते हुए स्पष्ट कहा कि किरण ने अपनी कंपनी खड़ी कर ली है और वह उसी बैनर से फिल्म बनाएंगी, जिसमें उनके होने की संभावना नहीं है। हैदराबाद में गजनी की शूटिंग कर रहे आमिर खान ने खास बातचीत में किरण की फिल्म की घोषणा के बारे में पूछने पर कहा, किरण ने सिनेमा 73 नाम की कंपनी बनायी है। वह अपने बैनर तले एक छोटी फिल्म बनाना चाहती हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट उन्होंने स्वयं लिखी है और वह खुद इसे निर्देशित करेंगी। मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी है। मुझे वह फिल्म पसंद आई। किरण की फिल्म में स्वाभाविक रूप से आमिर खान तो होंगे ही? इस सवाल पर हंसते हुए आमिर खान ने कहा कि अभी तक तो मैं नहीं ह...

ठंडी और सपाट 'वाया दार्जिलिंग'

-अजय ब्रह्मात्मज खुशी इस बात की है एनएफडीसी की फिल्म नियमित सिनेमाघरों में रिलीज हुई, लेकिन गम इस बात का है कि एनएफडीसी की फिल्म अभी तक अपने ढर्रे से बाहर नहीं निकल सकी है। अरिंदम नंदी शिल्प, कथ्य और प्रस्तुति में कला फिल्मों के नाम पर बदनाम हो चुकी शैली में जकड़े हुए हैं। वाया दार्जिलिंग आखिरकार निराश करती है।हनीमून के लिए दार्जिलिंग गए नवदंपती में से पति लौटने के दिन गायब हो जाता है। मामले की तहकीकात कर रहे पुलिस अधिकारी राबिन रहस्य की तह तक नहीं पहुंच पाते। सालों बाद दोस्तों की महफिल में वह उस घटना की बातें करते हैं। वहां मौजूद दूसरे दोस्त उस घटना के कारण और परिणाम की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। एक ही घटना के चार अंत सुनाए और दिखाए जाते हैं।अरिंदम नंदी ने रोशोमन से मशहूर हुई एक कहानी अनेक अंत की शैली तो अपना ली है, लेकिन अपनी अनेकता में वह रोचकता नहीं बनाए रख पाते। हर व्याख्या में कुछ खामियां और कमियां हैं, जिनके कारण रहस्य कौतूहल पैदा नहीं करता। फिल्म की मूल कहानी में गति और रोचकता है, लेकिन व्याख्याओं का चित्रण बिल्कुल ठंडा और सपाट है। केके मेनन, रजत कपूर और विनय पाठक जैसे एक्टर भी...

थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक:और परी को प्यार हो गया

थोडा प्यार, थोडा मैजिक चौंके नहीं। पर्दे पर फिल्म का नाम हिंदी में ऐसे ही आता है- थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक। ड के नीचे बिंदी लगाना पब्लिसिटी डिजाइनर भूल गया और हमारे निर्माता-निर्देशकों का हिंदी ज्ञान इतना नहीं होता कि वे ड और ड़ का फर्क समझ सकें। प्रसंगवश पिछले दिनों पांचवी पास के एक इवेंट में किंग खान शाहरुख भी पढ़ो को पढो लिखते पाए गए थे। बहरहाल, थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक रोचक फिल्म है। इस तरह की फिल्में हम पहले भी देख चुके हैं। विदेशों में कई फिल्में इस विधा में बनी हैं। उनमें से कुछ के दृश्य तो थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक में भी लिए गए हैं। मौलिकता की शर्त थोड़ी ढीली करने के बाद फिल्म देखें तो मजा आएगा। रणबीर तलवार के जीवन की एक दुर्घटना उनके वर्तमान और भविष्य को बदल देती है। उनकी गलती से एक दंपती की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाती है। जज महोदय अनोखा फैसला सुनाते हैं, जिसके तहत मृत दंपती के चारों बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी रणबीर को सौंप दी जाती है। रणबीर और चारों बच्चों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। स्थिति यह आती है कि दोनों ही पक्ष भगवान से कुछ करने की गुहार लगाते हैं। थ्री पीस सूट और फ्...

वेब दुनिया पर चवन्नी चैप

चवन्नी चैप, फिल्मों पर बढ़िया खेप -रवींद्र व्यास हिंदी में फिल्मों पर बेहतर साहित्य का अभाव है। यदि आप हिंदी पत्रिकाओं-अखबारों पर सरसरी निगाह ही डालेंगे तो पाएँगे कि यहाँ किसी भी फिल्म पर औसत दर्जे के चलताऊ किस्म के लेख ज्यादा मिलेंगे। इनका स्वाद भी कुछ-कुछ चटखारेदार होता है। उसमें फूहड़ किस्म की टिप्पणियाँ होती हैं और जो जानकारियाँ दी जाती हैं उनमें अधिकांश में गॉसिप होते हैं। फिल्म समीक्षाओं का लगभग टोटा है। जो समीक्षाएँ छपती हैं उनमें आधी से ज्यादा जगह कहानी घेर लेती है। बचे हिस्से में कुछ सतही पंक्तियाँ भर होती हैं जैसे- संगीत मधुर है और फोटोग्राफी सुंदर है। अभिनय ठीक-ठाक है। लेकिन इस परिदृश्य में कुछ फिल्मी पत्रकार हैं, जो फिल्मों पर औसत दर्जे से थोड़ा ऊपर उठकर कुछ बेहतर लिखने की कोशिश करते हैं। यदि फिल्मों पर आपको ठीकठाक लेख या टिप्पणियाँ पढ़ना हो तो आपके लिए अजय ब्रह्मात्मज का ब्लॉग चवन्नी चैप एक बेहतर विकल्प हो सकता है। कई लोग उनके इस ब्लॉग का नाम चवन्नी छाप लिखते हैं लेकिन इसकी पोस्ट्स पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कतई चवन्नी छाप नहीं है। फिल्मों में दिलचस्पी रखने वाले प्...

सम्राट अशोक के रूप में दिखेंगे अमिताभ

-अजय ब्रह्मात्मज रिलाएंस बिग एंटरटेनमेंट और बिग बी की कंपनी एबी कॉर्प के बीच हुए 1500 करोड़ केसंयुक्त निर्माण की खबरों में जिन चार निर्देशकों का नाम आया है, उनमें से एक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं। डॉ द्विवेदी अमिताभ बच्चन को अपनी फिल्म में सम्राट अशोक के रूप में पेश करेंगे। पीरियड सीरियल और फिल्म के लिए मशहूर डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने नयी फिल्म केलिए मौर्य काल को चुना है। उनके करीबी सूत्रों के मुताबिक फिल्म में पिता अशोक और पुत्र कुणाल के संबंधों के साथ ही कुणाल की सौतेली मां तिष्यरक्षिता की कहानी रहेगी। डॉ द्विवेदी ने इस फिल्म का लेखन लगभग पांच साल पहले आरंभ किया था,लेकिन बीच में पिंजर में व्यस्त हो जाने के कारण उसे रोक दिया था। डॉ द्विवेदी के एक मित्र के मुताबिक विश्व भर में फैले आतंकवाद, घृणा, युद्ध और हिंसा के माहौल के खिलाफ इस फिल्म की कल्पना की गई थी। सभी जानते हैं कि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक बौद्ध हो गए थे। इस फिल्म में दया, करुणा, क्षमा और मैत्री के भाव पर जोर है। सम्राट अशोक के जीवन की एक महत्वपूर्ण नाटकीय घटना पर आधारित इस फिल्म की का संदेश आज के लिए प्रासंगिक और उपयु...

फिल्मी कारोबार खुले हैं नए द्वार

-अजय ब्रह्मात्मज अभी तक हम यही जानते और मानते हैं कि फिल्में यदि बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करतीं, तो निर्माता घाटे में रहता है और इसीलिए उक्त फिल्म से जुड़े स्टारों का बाजार भाव गिर जाता है। यह सच जरूर है, लेकिन फिल्मों के व्यापक कारोबार का यह पूरा सच नहीं है। इन दिनों फिल्मों की कमाई के कई नए द्वार खुल गए हैं। आमतौर पर हिंदी फिल्मों का निर्माता अगर अपनी फिल्म रिलीज कर लेता है, तो वह नुकसान में नहीं रहता। तत्काल वह फायदे में भले ही नहीं दिखे, लेकिन एक अंतराल में वह निवेशित राशि निकाल ही लेता है। इसीलिए लगातार फ्लॉप हो रहीं फिल्मों के बावजूद निर्माता नई फिल्मों की घोषणाएं करते ही रहते हैं। दरअसल, पहले बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ही फिल्मों की आय का मुख्य जरिया था, क्योंकि फिल्में 25 हफ्तों और 50 हफ्तों तक सिनेमाघरों में टिके रहने के बाद निर्माताओं और स्टारों के चेहरे पर मुस्कान लाती थीं, लेकिन सच तो यह है कि अब चेहरे पर यह मुस्कान 25 और 50 दिनों में ही आ जाती है। कुछ फिल्में तो सप्ताहांत के तीन दिनों में ही फायदा दिखाने लगती हैं। एक सच यह भी है कि लगभग एक हजार प्रिंट एक साथ सिनेमाघरों मे...