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हिंदी सिनेमा में हॉलीवुड का इन्टरेस्ट

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-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों के ट्रेड पंडित भले ही संजय लीला भंसाली की फिल्म सांवरिया को फ्लॉप घोषित कर चुके हों, लेकिन मुंबई में सक्रिय सोनी पिक्चर्स के अधिकारी इस फिल्म से संतुष्ट हैं और इसीलिए वे आगे भी हिंदी फिल्म के निर्माण के बारे में सोच रहे हैं। सिर्फ सोनी पिक्चर्स ही नहीं, बल्कि हाल-फिलहाल में हॉलीवुड की अनेक प्रोडक्शन कंपनियों ने मुंबई में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है और इसीलिए वायाकॉम, डिज्नी, वार्नर ब्रदर्स, सोनी बीएमजी और ट्वेंटीएथ सेंचुरी फॉक्स के अधिकारी हिंदी फिल्मों के निर्माताओं के साथ संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं। कहते हैं, इस बार वे निश्चित इरादों और रणनीति के साथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की गलियों में घूम रहे हैं। पिछले दिनों इंटरनेशनल पहचान की अभिनेत्री के इंटरव्यू के लिए प्रतीक्षा करते समय उनसे मिलने आए डिज्नी के अधिकारियों से मुलाकात हो गई। सारे अधिकारी अमेरिका से आए थे। उनके इरादों का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनके विजिटिंग कार्ड में एक तरफ सारी जानकारियां हिंदी में छपी थीं। इन दिनों हिंदी फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों के विजिटिंग कार्ड में हिंदी का अ भी न...

बॉक्स ऑफिस:२६.०३.२००८

पहली तिमाही की आखिरी फिल्म रेस से ट्रेड पंडितों की उम्मीद पूरी हो गई। इस फिल्म को ओपनिंग अच्छी मिली और पहले तीन दिनों में इसका कारोबार अस्सी प्रतिशत से ऊपर रहा। जनवरी सेमार्च तक आशुतोष गोवारिकर की जोधा अकबर के अलावा किसी और फिल्म का बिजनेस संतोषजनक नहीं रहा था। ऐसे में रेस के कारोबार से इंडस्ट्री में खुशी की लहर आई है। फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी ने फिल्म के प्रदर्शन की आक्रामक रणनीति अपनाई। उन्होंने खाली सिनेमाघरों में अपनी फिल्म भर दी। उन्होंने करण जौहर और यश चोपड़ा की तरह फिल्म के अधिकतम प्रिंट जारी किए और पहले तीन दिनों की भरपूर कमाई का पुख्ता इंतजाम किया। सूत्रों के मुताबिक रेस के 1100 से अधिक प्रिंट सिनेमाघरों में चल रहे हैं। रेस का मल्टीस्टारर होना दर्शकों को सिनेमाघरों में खींचने का अच्छा जरिया बना। सैफ अली खान, अक्षय खन्ना और अनिल कपूर के साथ कैटरीना कैफ और बिपाशा बसु का ग्लैमर काम आया। समीक्षकों ने फिल्म की आलोचना तो की लेकिन एक स्तर तक अब्बास-मस्तान की स्टाइल को सराहा। इस फिल्म को युवा दर्शक मिल रहे हैं। उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म के सारे किरदार बुरे क्यों हैं? प...

आमिर खान का माफीनामा

आमिर खान पिछले दिनों टोरंटो में थे.वहाँ पहुँचने के पहले उन्होंने अपने ब्लॉग के जरिये टोरंटो के ब्लॉगर मित्रों को संदेश दिया था कि आप अपना सम्पर्क नम्बर दें.अगर मुझे मौका मिला तो आप में से कुछ मित्रों को बुलाकर मिलूंगा.इस सुंदर मंशा के बावजूद आमिर खान टोरंटो में समय नहीं निकाल सके.उन्होंने टोरंटो के अपने सभी ब्लॉगर मित्रों से माफ़ी मांगी है,लेकिन वादा किया है कि वे भविष्य में अपने ब्लॉगर मित्रों से जरूर मिलेंगे.टोरंटो के एअरपोर्ट से उन्होंने यह पोस्ट डाली है। गजनी के नए गेटउप में आमिर खान के कान काफी बड़े-बड़े दिख रहे हैं.आमिर खान ने बताया है कि उन्हें बचपन में बड़े कान वाला लड़का कहा जाता था.बचपन में उनका एक नाम बिग इअर्स (big ears) ही पड़ गया था.

खेमों में बंटी फ़िल्म इंडस्ट्री, अब नहीं मनती होली

-अजय ब्रह्मात्मज हर साल होली के मौके पर मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मिथक बन चुकी आरके स्टूडियो की होली याद की जाती है। उस जमाने में बच्चे रहे अनिल कपूर, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर से बातें करें, तो आज भी उनकी आंखों में होली के रंगीन नजारे और धमाल दिखाई देने लगते हैं। कहते हैं, होली के दिन तब सारी फिल्म इंडस्ट्री सुबह से शाम तक आरके स्टूडियो में बैठी रहती थी। सुबह से शुरू हुए आयोजन में शाम तक रंग और भंग का दौर चलता रहता था। विविध प्रकार के व्यंजन भी बनते थे। वहां आर्टिस्ट के साथ तकनीशियन भी आते थे। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता था। उस दिन की मौज-मस्ती में सभी बराबर के भागीदार होते थे। एक ओर शंकर-जयकिशन का लाइव बैंड रहता था, तो दूसरी ओर सितारा देवी और गोपी कृष्ण के शास्त्रीय नृत्य के साथ बाकी सितारों के फिल्मी ठुमके भी लगते थे। सभी दिल खोल कर नाचते-गाते थे। स्वयं राजकपूर होली के रंग और उमंग की व्यवस्था करते थे। दरअसल, हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन राजकपूर जब तक ऐक्टिव रहे, तब तक आरके स्टूडियो की होली ही फिल्म इंडस्ट्री की सबसे रंगीन और हसीन होली बनी रही। उन दिनों स्टार के रूप में दिलीप कुमार और ...

रेस: बुरे किरदारों की एंटरटेनिंग फिल्म

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-अजय ब्रह्मात्मज प्रेम, आपसी संबंध और संबंधों में छल-कपट की कहानियां हमें अच्छी लगती हैं। अगर उनमें अपराध मिल जाए तो कहानी रोचक एवं रोमांचक हो जाती है। साहित्य, पत्रिकाएं और अखबार ऐसी कहानियों से भरे रहते हैं। फिल्मों में भी रोमांचक कहानियों की यह विधा काफी पॉपुलर है। हम इस विधा को सिर्फ थ्रिलर फिल्मों के नाम से जानते हैं। निर्देशक अब्बास मस्तान ऐसी फिल्मों में माहिर हैं। हालांकि उनकी 36 चाइना टाउन और नकाब को दर्शकों ने उतना पसंद नहीं किया था। इस बार वे फॉर्म में दिख रहे हैं। रणवीर और राजीव सौतेले भाई हैं। ऊपरी तौर पर दोनों के बीच भाईचारा दिखता है, लेकिन छोटा भाई ग्रंथियों का शिकार है। वह अंदर ही अंदर सुलगता रहता है। उसे लगता है कि बड़ा भाई रणवीर हमेशा उस पर तरस खाता रहता है। वह उसके प्रेम को भी उसका दिखावा समझता है। रणवीर घोड़ों के धंधे में है। उसमें आगे रहने की ललक है और वह हमेशा जीतने की कोशिश में रहता है। दूसरी तरफ राजीव को शराब की लत लग गई है। रणवीर की जिंदगी में दो लड़कियां हैं। एक तो उसकी नयी-नयी बनी प्रेमिका सोनिया और दूसरी सोफिया, जो उसकी सेक्रेटरी है। राजीव की नजर सोनिया पर ...

गंजे हो गए आमिर खान

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अपनी नई फ़िल्म 'गजनी' के लिए आमिर खान को गंजा होना था.कल टोरंटो जाने से पहले अपने आवास पर उन्होंने हेयर स्टाइलिस्ट अवाँ कांट्रेक्टर को घर पर बुलाया।बीवी किरण राव और गीतकार प्रसून जोशी के सामने उन्होंने बाल कटवाए और गजनी के लुक में आ गए.आमिर खान ने अपनी फिल्मों के किरदार के हिसाब से लुक बदलने का रिवाज शुरू किया.गजनी में उन्हें इस लुक में इसलिए रहना है कि सिर पर लगा जख्म दिखाया जा सके.आमिर ने फ़िल्म के निर्देशक मुर्गदोस से अनुमति लेने के बाद ही अपना लुक बदला.ऐसा कहा जा रहा है कि 'गजनी'में मध्यांतर के बाद वे इसी लुक में दिखेंगे.

दस साल का हुआ मामी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल

-अजय ब्रह्मात्मज हर साल मुंबई में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन होता है। इस साल 7 से 13 मार्च के बीच आयोजित फेस्टिवल में 125 से अधिक फिल्में दिखाई गई। सात दिनों के इस फेस्टिवल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी कई नामी हस्तियों ने हिस्सा भी लिया। सबसे सुखद बात यह रही कि कई सक्रिय फिल्मकारों ने दर्शकों, फिल्म प्रेमियों और फिल्मों में आने के इच्छुक व्यक्तियों से आमने-सामने बातें भी कीं। उन्होंने उनके साथ फिल्म निर्माण से संबंधित मुद्दों पर बातें कीं और उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया और उसके बाद अपनी विशेषज्ञता शेयर की। मुंबई का मामी फिल्म फेस्टिवल इस मायने में विशेष है कि इसके आयोजन में फिल्म इंडस्ट्री के सदस्यों की भागीदारी रहती है। हालांकि महाराष्ट्र की सरकार आर्थिक मदद करती है, लेकिन फेस्टिवल से संबंधित किसी भी फैसले में कोई सरकारी दबाव और हस्तक्षेप नहीं रहता। इस फेस्टिवल की कई उपलब्धियां हैं। मशहूर निर्देशक नागेश कुकनूर को पहली बार इसी फेस्टिवल से पहचान मिली। कोंकणा सेन शर्मा इसी फेस्टिवल के जरिए हिंदी निर्माता-निर्देशकों से परिचित हुई थीं। देश-विदेश की कई विख्यात फिल्में पहली बार ...

बॉक्स ऑफिस १९.०३.०८

ऐसा लग ही रहा था कि 26 जुलाई ऐट बरिस्ता बाक्स आफिस पर डूब जाएगी। वही हुआ भी। इस फिल्म के हश्र पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। फिल्म पूरे भारत में रिलीज भी नहीं हो सकी थी। फिल्म ट्रेड के एक विशेषज्ञ की राय में निर्देशक मोहन शर्मा ने विषय तो महत्व का चुना था, लेकिन उसके साथ वह न्याय नहीं कर सके। उन्होंने एक संभावना भी खत्म कर दी। उनकी राय में किसी अच्छे विषय पर बुरी फिल्म बन जाए तो निर्माता उस विषय को फिर से छूने में कतराते हैं। ब्लैक एंड ह्वाइट के बारे में सुभाष घई जो भी पोस्टर छपवा और महानगरों की दीवारों पर सटवा रहे हों, सच तो यही है कि बाक्स आफिस पर फिल्म विफल रही। समीक्षकों ने अवश्य तारीफ की, मगर उनकी तारीफों का दर्शकों पर कोई असर नहीं हुआ। वैसे ब्लैक एंड ह्वाइट दिल्ली और महाराष्ट्र में टैक्स फ्री हो चुकी है। उम्मीद है कि दर्शक बढ़ेंगे और फिल्मकारों का नुकसान कम होगा। बाक्स आफिस पर कोई भी प्रतियोगिता नहीं होने से जोधा अकबर के दर्शक ज्यादा नहीं घटे हैं। यह फिल्म सप्ताहांत में दर्शक खींच रही है। इस हफ्ते अब्बास मस्तान की थ्रिलर रेस आ रही है।

चुंबन चर्चा : हिन्दी फ़िल्म

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हिन्दी फिल्मों में चुम्बन पर काफी कुछ किखा जाता रहा है.२००३ में मल्लिका शेरावत की एक फ़िल्म आई थी ' ख्वाहिश'. इस फ़िल्म में उन्होंने लेखा खोर्जुवेकर का किरदार निभाया था.फ़िल्म के हीरो हिमांशु मल्लिक थे.मल्लिक और मल्लिका की यह फ़िल्म चुंबन के कारन चर्चित हुई थी.इस फ़िल्म में एक,दो नहीं.... कुल १७ चुंबन थे। 'ख्वाहिश' ने मल्लिका को मशहूर कर दिया था और कुछ समय के बाद आई 'मर्डर' ने तो मोहर लगा दी थी कि मल्लिका इस पीढ़ी की बोल्ड और बिंदास अभिनेत्री हैं। १७ चुंबन देख कर या उसके बारे में सुन कर दर्शक दांतों तले उंगली काट बैठे थे और उनकी पलकें झपक ही नहीं रहीं थीं.हिन्दी फिल्मों के दर्शक थोड़े यौन पिपासु तो हैं ही. बहरहाल चवन्नी आप को बताना चाहता है कि १९३२ में एक फ़िल्म आई थी 'ज़रीना',उस फ़िल्म में १७.१८.२५ नहीं .... कुल ८६ चुंबन दृश्य थे.देखिये गश खाकर गिरिये मत.उस फ़िल्म के बारे में कुछ और जान लीजिये। १९३२ में बनी इस फ़िल्म को ८६ चुंबन के कारण कुछ दिनों के अन्दर ही सिनेमाघरों से उतारना पड़ा था.फ़िल्म के निर्देशक एजरा मीर थे.एजरा मीर बाद में डाक्यूमेंट्री फिल्मों...

हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:वर्तमान दशक

यह दशक अभी समाप्त नहीं हुआ है.अगले दो साल में अभी न जाने किस-किस अभिनेत्री का दीदार होगा और न जाने किसका जादू दर्शकों के सिर चढ़ कर बोलेगा?फिलहाल दीपिका पदुकोन और सोनम कपूर अपने-अपने हिसाब से जलवे बिखेर रही हैं.दोनों एक ही दिन ९ अक्टूबर २००७ को परदे पर आयीं और छ गयीं.दीपिका की पहली फिम 'ओम शान्ति ओम' थी,जिसे फराह खान ने निर्देशित किया था.सोनम के निर्देशक संजय लीला भंसाली हैं.उनकी 'सांवरिया' से सोनम का आगमन हुआ.ऐसा लगता है कि दोनों का सफर लंबा है.हाँ,रास्ते अलग-अलग हैं. अब थोड़ा पीछे चलें. प्रीति जिंटा को शेखर कपूर पेश करने वाले थे.उनकी फ़िल्म नहीं बन सकी.मणि रत्नम की 'दिल से' में प्रीति की झलक दिखी थी.उनकी ज्यादातर फिल्में इसी दशक में आई हैं.इसी दशक में अमृता राव एक सामान्य सी फ़िल्म 'अब के बरस' से आयीं.धीरे-धीरे उनहोंने अपनी तरह की जगह बना ली.हेमामालिनी की बेटी एषा देओल अभी तक कोई मुकाम नही छू सकी हैं.करिश्मा कपूर की बहन करीना कपूर ने जे पी दत्ता की फ़िल्म 'रिफ्यूजी' से धमाकेदार शुरूआत की,लेकिन उनका सफर ठीक नहीं रहा.पिछले साल 'जब वी ...