कमल स्वरूप-3
कमल स्वरूप से हुई बातचीत अभी जारी है। उनके प्रशंसकों,पाठकों और दर्शकों के लिए उन्हें पढ़ना रोचक है। सिनेमा के छात्र और अध्यापक...फिल्मकार भी इस बातचीत से लाभान्वित हो सकते हैं। अबर आप कमल स्वरूप की फिल्म या उन पर कुछ लिखना चाहें तो स्वागत है। chavannichap@gmail.com पते पर भेज दें। सिनेमा के तीन चरण महत्वपूर्ण होता है। पहला ट्रांजिशन होता है। फिर ट्रांसफर होता है और अंत में ट्रांसफॉर्मेशन होता है। एक शॉट में ही ये तीनों चीजें हो जाती हैं। अगर कुछ घटित न हो तो शॉट पूरा नहीं माना जाता है। जैसे साहित्य कई प्रकार का होता है, वैसे ही सिनेमा भी कई प्रकार का होता है। हमारे यहां शॉट में एक्टर परफॉर्म कर रहे होते हैं। यह नौटंकी का विस्तार है। इसे सिनेमा नहीं कह सकते। सलवा डोर डाली ने दावा किया था कि उनके बिंब पढ़े नहीं जा सकते। वे पाठ के लिए नहीं हैं, क्योंकि वे स्वप्नबिंब हैं। सिनेमा के बिंब अनिर्वचनीय होते हैं। नई पीढ़ी के बच्चे इन्हें समझते हैं। वे शब्दों में लिखने-पढ़ने के बजाए बिंबों में व्यक्त करते हैं। उनकी भाषा शाब्दिक नहीं है। वे रंग, बिंब और चित्रों से अपनी