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दरअसल : बंद हो रहे सिंगल स्‍क्रीन,घट रहे दर्शक

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दरअसल... बंद हो रहे सिंगल स्‍क्रीन,घट रहे दर्शक -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले साल की सुपरहिट फिल्‍म ‘ दंगल ’ के प्रदर्शन के समय भी किसी सिनेमाघर पर हाउसफुल के बोर्ड नहीं लगे। पहले हर सिनेमाघर में हाउसफुल लिखी छोट-बड़ी तख्तियां होती थीं,जो टिकट खिड़की और मेन गेट पर लगा दी जाती थीं। फिल्‍म निर्माताओं के लिए वह खुशी का दिन होता था। अब तो आप टहलते हुए थिएटर जाएं और अपनी पसंद की फिल्‍म के टिकट खरीद लें। लोकप्रिय और चर्चित फिल्‍मों के लिए भी एडवांस की जरूरत नहीं रह गई है। लंबे समय के बाद हाल में दिल्‍ली के रीगल सिनेमाघर में हाउसफुल का बोर्ड लगा। रीगल के आखिरी शो में राज कपूर की ‘ संगम ’ लगी थी। दिलली के दर्शक रीगल के नास्‍टेलजिया में टूट पड़े थे। आज के स्‍तंभ का कारण रीगल ही है। दिल्‍ली के कनाट प्‍लेस में स्थित इस सिंगल स्‍क्रीन के बंद होने की खबर अखबारों और चैनलों के लिए सुर्खियां थीं। गौर करें तो पूरे देश में सिंगल स्‍क्रीन बंद हो रहे हैं। जिस तेजी से सिंगल स्‍क्रीन सिनेमाघरों के दरवाजे बंद हो रहे हैं,उसी तेजी से मल्‍टीप्‍लेक्‍स के गेट नहीं खुल रहे हैं। देश में मल्‍टीप्‍लेक्‍...

दरअसल : कंगना के आरोप से फैली तिलमिलाहट

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दरअसल... कंगना के आरोप से फैली तिलमिलाहट -अजय ब्रह्मात्‍मज कल कंगना रनोट का जन्‍मदिन था। रिकार्ड के मुताबिक वह 30 साल की हो गई। उनकी स्‍क्रीन एज 13 साल की है। 2004 में आई अनुराग बसु की ‘ गैंगस्‍टर ’ से उन्‍होंने हिंदी फिल्‍मों में धमाकेदार एंट्री की। 13 सालों में 31 फिल्‍में कर चुकी कंगना को तीन बार अभिनय के लिए राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिल चुके हें। अपने एटीट्यूड और सोच की वजह से वह पॉपुर फिल्‍म अवार्ड की चहेती नहीं रहीं। वह परवाह नहीं करतीं। उन अवार्ड समारोहों में वह हिस्‍सा नहीं लेतीं। मानती हैं कि ऐसे सामारोहों और इवेंट में जाना समय और पैसे की फिजूलखर्ची है। अपनी बातों और बयानों से सुर्खियों में रही कंगना रनोट ने हिंदी फिल्‍मों में खास मुकाम हासिल किया है। कह सकते हैं कि हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में बाहर से आकर अपनी ठोस जगह और पहचान बना चुकी अभिनेत्रियों में वह सबसे आगे हैं। उनकी आगामी फिल्‍म हंसल मेहता निर्देशित ‘ सिमरन ’ है। पाठकों को याद होगा कि पहली फिल्‍म ‘ गैंगस्‍टर ’ में उनका नाम सिमरन ही था। सिमरन से सिमरन तक के इस सफर से एक चक्र पूरा होता है। एक दिन देर से ही...

दरअसल : मैड्रिड में हिंदी सिनेमा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले 17 सालों से आइफा वीकएंड के तहत आइफा अवार्ड और अन्‍य इवेंट के आयोजन विदेशों में हो रहे हैं। आइफा सामान्‍य तौर पर भारतीय सिनेमा और विशेष तौर पर हिंदी सिनेमा के   प्रसार में अहम भूमिका निभाता रहा है। अभी तो हिंदी सिनेमा के प्रचारक और प्रसारक के नाम पर कई दावेदार निकल आएंगे,लेकिन इस सच्‍चाई सं इंकार नहीं किया जा सकता कि आइफा ने ही यह पहल की। उन्‍होंने भारतवंशियों और विदेशियों के बीच भारतीय फिल्‍मों और फिल्‍म स्‍टारों ‍को पहुंचाया और उनकी लोकप्रियता को सेलीब्रेट किया। आइफा इस मायने में हिंदी फिल्‍मों के अन्‍य पुरस्‍कारों से अलग और विशेष है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री और दुनिया भर के प्रशंसकों को आइफा का इंतजार रहता है। इंटरनेशनल मीडिया को हिंदी फिल्‍मों के स्‍टारों से मिलने का मौका मिलता है। प्रशंसकों को खुशी मिलती है कि उन्‍होंने अपने देश में उन स्‍टारों को देख लिया,जिन्‍हें वे जिंदगी भर केवल स्‍क्रीन पर देखते रहे। 17 वें आइफा अवार्ड समारोह का आयोजन स्‍पेन की राजधानी मैड्रिड में किया गया। 23 से 27 जुलाई तक मैड्रिड की गलियां और ऐतिहासिक स्‍थल हिंदी फिलमो...

दरअसल : हो सकता है एक और विवाद

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अभिषेक चौबे की ‘ उड़ता पंजाब ’ पर हाई कोर्ट की सुनवाई से आई खबरों को सही मानें तो केवल एक कट के साथ फिल्‍म रिलीज करने का आदेश मिल जाएगा। पिछले दिनों यह फिल्‍म भयंकर विवाद में रही। फिल्‍म के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्‍यप ने सीबीएफसी की आरंभिक आपत्ति के बाद से ही मोर्चा खोल लिया था। सीबीएफसी के पुराने अनुभवों और गुत्थियों की जानकारी होने की वजह से उनके पार्टनर ने अनुराग कश्‍यप को सामने कर दिया था। उन्‍होंने सलीके से अपना विरोध जाहिर किया। और सीबीएफसी के खिलाफ फिल्‍म इंडस्‍ट्री को लामबंद किया। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के कुछ संगठन साने आए। सभी फिल्‍मों को अनुराग कश्‍यप जैसा जुझारू और जानकार निर्माता नहीं मिलता। ज्‍यादातर लोग सिस्‍टम से टकराने या उसके आगे खड़े होने के बजाए झुक जाना पसंद करते हैं। ‘ उड़ता पंजाब ’ ने निर्माताओं का राह दिखाई है कि अगर उन्‍हें अपनी क्रिएटिविटी और फिल्‍म पर यकीन है तो तो वे इसी सिस्‍टम में अपनी लड़ाई लड़ कर विजय भी हा‍सिल कर सकते हैं। दरअसल,ज्‍यादातर निर्माता पर्याप्‍त तैयारी और समय के साथ फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड नहीं आते। फिल्‍...

दरअसल : विदेशों में पॉपुलर टीवी कलाकार

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- अजय ब्रह्मात्मज हाल ही में स्टार प्लस के शो   ' ये रिश्ता क्या कहलाता है ' की शूटिंग के सिलसिले में होनकोंग जाने का मौका मिला। इन दिनों टीवी शो भी शूटिंग के लिए अपने कलाकारों को लेकर विदेश जाने लगे हैं। उद्देश्य यही रहता है कि दर्शकों को विदेश की पृष्ठभूमि देखने को मिले। इसी बहाने दर्शक भी अपनी बैठक में बैठे - बैठे ही विदेशों की सैर कर लेते हैं। दशकों पहले जब हमारी दुनिया आज की तरह ग्लोबल नहीं हुई थी तो हिंदी फिल्मों की शूटिंग विदेशों में की जाती थी। दर्शकों को लुभाने और थिएटर में लाने का यह फार्मूला बहुत पॉपुलर हुआ था। बाद में तो पूरा परिदृश्य बदल गया। यश चोपड़ा   ने अलग तरह से विदेशों की छटा परोसी। उनके बाद तो निर्माताओं में विदेशी लोकेशन में देशी इमोशन दिखाने की होड़ लग गयी। क्या टीवी के साथ भी यही हो रहा है ? हमें ख्याल रखना होगा की जब किसी टीवी शो के कलाकार विदेश जाएँ तो कहानी भी वहां जाए। वहां के स्थानीय ...