हे बेबी
पधारिए को अगर पाद हारिए उच्चारित करने से कॉमेडी क्रिएट हो जाती है तो हे बेबी एक सफल कॉमेडी फिल्म है। कॉमेडी में अभिनय और प्रसंग के साथ संवाद का भी योगदान रहता है। साजिद खान वैसे तो वाक्पटु हैं लेकिन फिल्म में मिलाप झावेरी के ऐसे संवादों को वे क्यों नहीं सुधार पाए? कहीं कुछ गड़बड़ है..या तो फिल्म बनाने की हड़बड़ी थी या फिर सिरे से सोच गायब था। हे बेबी के हे और बेबी में अतिरिक्त वाई लगाकर कामयाबी की उम्मीद करने वाले अंधविश्वासियों का यह हश्र स्वाभाविक है। फिल्म शुरू से लड़खड़ाती है और अंत तक संभल ही नहीं पाती। अक्षय कुमार, फरदीन खान, रितेश देखमुख और विद्या बालन जैसे लोकप्रिय और बिकाऊ नाम भी बांध कर नहीं रख पाते। तीन आवारागर्दो, आरुश (अक्षय), एल (फरदीन) और तन्मय (रितेश) की ब्रेफिक्र और मनचली जिंदगी में तब एक मोड़ आता है, जब कोई उनके दरवाजे पर एक बच्ची छोड़ जाता है। तीनों उसे पुलिस के हवाले करने के बजाय पालने का जोखिम उठाते हैं। फिर उनके स्वभाव में बदलाव शुरू होता है। बच्ची से उनका लगाव बढ़ता है, तभी बच्ची की मां ईशा आकर उसे ले जाती है। बाद में पता चलता है कि बच्ची तो आरुश की बेटी है और ईश...