फिल्म समीक्षा : पार्टीशन 1947
फिल्म रिव्यू पार्टीशन 1947 -अजय ब्रह्मात्मज देश के बंटवारे का जख्म अभी तक भरा नहीं है। 70 सालों के बाद भी वह रिस रहा है। भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश बंटवारे के प्रभाव से निकल ही नहीं पाए हैं। पश्चिम में द्वितीय विश्वयुद्ध और अन्य ऐतिहासिक और राजनीतिक घटनाओं पर फिल्में बनती रही हैं। अपने देश में कम फिल्मकारों ने इस पर ध्यान दिया। ‘ गर्म हवा ’ और ‘ पिंजर ’ जैसी कुछ फिल्मों में बंटवारे और विस्थापन से प्रभावित आम किरदारों की कहानियां ही देखने को मिलती हैं। गुरिंदर चड्ढा की फिल्म का नाम ही ‘ पार्टीशन 1947 ’ है। भारत में नियुक्त ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटेन के दृष्टिकोण से चित्रित इस फिल्म में ऐतिहासिक दस्तावेजों का भी सहारा लिया गया है। कुछ दस्तावेज तो हाल के सालों में सामने आए हैं। उनकी पृष्ठभूमि में बंटवारे का परिदृश्य ही बदल जाता है। गुरिंदर चड्ढा ने लार्ड माउंटबेटेन और उनके परिवार के सदस्यों के साथ आलिया और जीत की प्रेमकहानी भी रखी है। यह फिल्म दो स्तरों पर साथ-साथ चलती है। 1947 में आजादी के ठीक पहले चल रही राजनीतिक गतिविधियों के ब...