दरअसल : हिंदी सिनेमा का चीनी पहलू
दरअसल... हिंदी सिनेमा का चीनी पहलू -अजय ब्रह्मात्मज कुछ सालों पहले हांगकांग से एक पत्रकार मुंबई आए थे। वे हिंदी फिल्मों में चीन के वर्णन और चित्रण पर शोध कर रहे थे। उन्हें बहुत निराशा हाथ लगी थी। उन्हें कहीं से पता चला था कि मैं चीन में रह चुका हूं और मैंने सिनेमा के संदर्भ में भारत-चीन पर कुछ लिखा है। हम मिले और हम ने विमर्श किया कि ऐसा क्यों हुआ कि भारतीय फिल्मों में चीन की उचित छवि नहीं पेश की गई है। चीनी किरदार दिखाए भी गए तो उन्हें विलेन या कॉमिकल किरदारों के रूप में दिखाया गया। उनका हमेश मजाक उड़ाया गया। अपने देश की आजादी और चीन की मुक्ति के बाद बुलंद हुआ ‘ हिंदी-चीनी भाई-भाई ’ का नारा अचानक 1962 के बाद सुनाई पड़ना बंद हो गया। भारतीय मीडिया में चीन को दुश्मन देश के रूप में पेश किया गया। यह बताया गया कि नेहरू की दोस्ती के प्रयासों को नजरअंदाज कर चीन ने भारत की पीठ में छूरा घोंप दिया। पचपन सालों के बाद भी हम उस मानसिकता से नहीं निकल पाए हैं। अभी हाल में ‘ नितेश तिवारी निर्देशित दंगल ने चीन में 700 करोड़ रुपयों से अधिक का कारोबार किया तो फिर से चीन सभी ...