हिंदी टाकीज-2 (2) : 'घातक’ साबित हुयी घातक- विमल चंद्र पाण्डेय
हिंदी टाकीज-2 में इस बार विमल चंद्र पाण्डेय । विमल इन दिनों मुंबई में हैं। मैं ग्यारहवीं में गया था और अचानक मेरे आसपास की दुनिया बदल गयी थी। अब न मुझे कंधे पर किताबों से भरा बैग लादना था और न ही स्कूल में मुझे कोई धमकाने और डराने वाला सीनीयर रह गया था। जो बारहवीं के छात्र थे , उनके पास खुदा के करम से करने को और भी ज़रूरी काम थे जिनमें फिल्मों के बाद सबसे ज़रूरी काम था उन लड़कियों के पीछे एक दूसरे का मुंह फोड़ देना जिसे पता भी नहीं हो कि वह ‘ एप्पल ऑफ डिस्कॉर्ड ’ बन चुकी है। हम अपने उन एक साल सीनीयर बंधुओं की ओर देखते तो वे हमारी ओर दोस्ताना भाव से देखते। ये वही लोग थे जो पिछले साल तक हमें बबुआ समझते थे और सिगरेट पीता देखने पर कान पकड़ कर हड़का दिया करते थे। राजकीय क्वींस कॉलेज पूरे बनारस में जितना अपने अच्छे रिजल्ट के लिये मशहूर था उतना ही मारपीट के लिये भी। बिना घर पर बताये वैसे तो हमने नियमित फिल्में देखना नवीं कक्षा से ही शुरू कर दिया था जिसकी शुरूआत हमारे सहपाठी अमित के सहयोग से हुयी थी। उसके पिता जी नगर निगम में कार्यरत थे और एक सादे चिट पर अपनी गंदी ह...