Posts

Showing posts with the label हर्षवर्धन कपूर

फिल्‍म समीक्षा : मिर्जिया

Image
दो युगों की दास्‍तान -अजय ब्रह्मात्‍मज राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘ मिर्जिया ’ दो कहानियों को साथ लेकर चलती है। एक कहानी पंजाब की लोककथा मिर्जा-साहिबा की है। दूसरी कहानी आज के राजस्‍थान के आदिल-सूची की है। दोनों कहानियों का अंत एक सा है। सदियों बाद भी प्रेम के प्रति परिवार और समाज का रवैया नहीं बदला है। मेहरा इस फिल्‍म में अपनी शैली के मुताबिक दो युगों में आते-जाते हैं। ‘ रंग दे बसंती ’ उनकी इस शैली की कामयाब फिल्‍म थी। इस बार उनकी फिल्‍म दो कहानियों को नहीं थाम सकी है। दोनों कहानियों में तालमेल बिठाने में लेखक और निर्देशक दोनों फिसल गए हैं। अपारंपरिक तरीके से दो कहानियों का जोड़ने में वे ‘ रंग दे बसंती ’ की तरह सफल नहीं हो पाए हैं। गुलजार के शब्‍दों के चयन और संवादों में हमेशा की तरह लिरिकल खूबसूरती है। उन्‍हें राकेश ओमप्रकाश मेहरा आकर्षक विजुअल के साथ पेश करते हैं। फिल्‍म के नवोदित कलाकारो हर्षवर्धन कपूर और सैयमी खेर पर्दे पर उन्‍हें जीने की भरपूर कोशिश करते हैं। सभी की मेहनत के बावजूद कुछ छूट जाता है। फिल्‍म बांध नहीं पाती है। यह फिल्‍म टुकड़ों में अच्‍छी लगती है। द,...

कायम रहे हमेशा इश्‍क - हर्षवर्धन कपूर

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज अनिल कपूर के बेटे और सोनम कपूर के भाई हर्षवर्धन कपूर की पहली फिल्‍म मिर्जिया आ रही है। इसके निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा हैं। इस फिल्‍म की स्क्रिप्‍ट गुलजार ने लिखी है।  -कितनी खुशी है और कितनी घबराहट है? ० बहुत ही यूनिक हालत हैं। यह बहुत ही अलग किस्म की फिल्म है। गुलजार साहब ने लिखी है। उनके लिखे को राकेश ओम प्रकाश मेहरा साहब ने पर्दे पर उतारा है। यह मिर्जा-साहिबा की प्रेम कहानी है। उनकी एक एक्सटर्नल लव स्टोरी है , जो यूनिवर्स में प्ले आउट होती है।  उनके बीच के रोमांस का यह आइडिया है कि वह हमेशा रहे। इसमें 2016 का राजस्‍थन भी है। आदिल औऱ सूचि आज की कहानी के पात्र है। फिल्‍म में गुलजार साहब ने एक लाइन लिखी है, मरता नहीं इश्क मिर्जिया सदिया साहिबा रहती हैं। देखें तो प्यार कभी मरता नहीं। वह इंटरनल सोल में रहता है।  -मतलब एक सदी में आना है औऱ एक सदी से जाना है? ० जी बिल्कुल। यह बहुत पोएटिक है। गुलजार साहब बहुत ही सोच समझकर लिखते हैं। आप आज एक सीन पढ़ लें और दस महीने बाद उसे फिर से पढ़ें तो फिर अलग नजरिए से सोचने लगते हैं। यही गुलजा...