फिल्म समीक्षा : जलपरी
मुद्दे पर बनी मनोरंजक फिल्म -अजय ब्रह्मात्मज नीला माधब पांडा की जलपरी श्रेया (लहर खान) के माध्यम से एक सोए हुए गांव की संकीर्णताओं और जड़ मान्यताओं को उजागर करती है। पांडा ने इसे रोचक और मनोरंजक तरीके से पेश किया है। पिछले साल आई उनकी फिल्म आई एम कलाम की तरह इस बार भी फिल्म के मुख्य किरदार बच्चे हैं, लेकिन यह बच्चों की फिल्म नहीं है। देव(प्रवीण डबास) अपने बेटे-बेटी के साथ शहर में रहते हैं। पत्नी के निधन के बाद वे अकेले ही बच्चों को पाल रहे हैं। उन्होंने अपने बच्चों पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं लगाई है। उनकी बेटी श्रेया अपनी उम्र के हिसाब से दबंग किस्म की लड़की है। अपनी शैतानियों की वजह से स्कूल और घर में उसे बार-बार फटकार मिलती है, लेकिन उसे पिता देव से छूट मिली हुई है। दरअसल, देव नहीं चाहते कि उनकी बेटी या बेटे किसी प्रकार का अंकुश महसूस करें। देव अपने पैतृक गांव में पत्नी के नाम पर एक अस्पताल खोलना चाहते हैं। उन्हें पंचायत और सरपंच की रजामंदी मिल गई है, लेकिन गांव के पारंपरिक हकीम को यह बात नागवार गुजरती है। बहरहाल, श्रेया अपने छोटे भाई सैम(कृ...