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फिल्‍म समीक्षा : हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  हिदी फिल्मों की नई पीढ़ी का एक समूह हिंदी फिल्मों से ही प्रेरणा और साक्ष्य लेता है। करण जौहर की फिल्मों में पुरानी फिल्मों के रेफरेंस रहते हैं। पिछले सौ सालों में हिंदी फिल्मों का एक समाज बन गया है। युवा फिल्मकार जिंदगी के बजाय इन फिल्मों से किरदार ले रहे हैं। नई फिल्मों के किरदारों के सपने पुरानी फिल्मों के किरदारों की हकीकत बन चुके हरकतों से प्रभावित होते हैं। शशांक खेतान की फिल्म 'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया' आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की रीमेक या स्पूफ नहीं है। यह फिल्म सुविधानुसार पुरानी फिल्म से घटनाएं लेती है और उस पर नए दौर का मुलम्मा चढ़ा देती है। शशांक खेतान के लिए यह फिल्म बड़ी चुनौती रही होगी। उन्हें पुरानी फिल्म से अधिक अलग नहीं जाना था और एक नई फिल्म का आनंद भी देना था। चौधरी बलदेव सिंह की जगह सिंह साहब ने ले ली है। अमरीश पुरी की भूमिका में आशुतोष राणा हैं। समय के साथ पिता बदल गए हैं। वे बेटियों की भावनाओं को समझते हैं। थोड़ी छूट भी देते हैं, लेकिन वक्त पडऩे पर उनके अंदर का बलदेव सिंह जाग जाता...

अपेक्षाएं बढ़ गई हैं प्रेमियों की-शशांक खेतान

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-अजय ब्रह्मात्मज     धर्मा प्रोडक्शन की ‘हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया’ के निर्देशक शशांक खेतान हैं। यह उनकी पहली फिल्म है। पहली ही फिल्म में करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन का बैनर मिल जाना एक उपलब्धि है। शशांक इस सच्चाई को जानते हैं। ‘हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया ’ के लेखन-निर्देशन के पहले शशांक खेतान अनेक बैनरों की फिल्मों में अलग-अलग निर्देशकों के सहायक रहे। मूलत: कोलकाता के खेतान परिवार से संबंधित शशांक का बचपन नासिक में बीता। वहीं पढ़ाई-लिखाई करने के दरम्यान शशांक ने तय कर लिया था कि फिल्मों में ही आना है। वैसे उन्हें खेल का भी शौक रहा है। उन्होंने टेनिस और क्रिकेट ऊंचे स्तर तक खेला है। शुरू में वे डांस इंस्ट्रक्टर भी रहे। मुंबई आने पर उन्होंने सुभाष घई के फिल्म स्कूल ह्विस्लिंग वूड्स इंटरनेशनल में दाखिला लिया। ज्यादा जानकारी न होने की वजह से उन्होंने एक्टिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई के दरम्यान उनकी रुचि लेखन और डायरेक्शन में ज्यादा रही। टीचर कहा भी करते थे कि उन्हें फिल्म डायरेक्शन पर ध्यान देना चाहिए। दोस्तों और शिक्षकों के प्रोत्साहन से शशांक ने ‘ब्लैक एंड ह्वाइट’ और ‘युवराज’ म...