फिल्म समीक्षा : जॉली एलएलबी 2
फिल्म रिव्यू सहज और प्रभावपूर्ण जॉली एलएलबी 2 -अजय ब्रह्मात्मज सुभाष कपूर लौटे हैं। इस बार वे फिर से जॉली के साथ आए हैं। यहां जगदीश त्यागी नहीं,जगदीश्वर मिश्रा हैं। व्यक्ति बदलने से जॉली के मिजाज और व्यवहार में अधिक फर्क नहीं आया है। लखनऊ में वकालत कर रहे जगदीश्वर मिश्रा उर्फ जॉली असफल वकील हैं। मुंशी के बेटे जगदीश्वर मिश्रा शहर के नामी वकील रिजवी के पंद्रहवें सहायक हैं। हां,उनके इरादों में कमी नहीं है। वे जल्दी से जल्दी अपना एक चैंबर चाहते हैं। और चाहते हैं कि उन्हें भी कोई केस मिले। अपनी तरकीबों में विफल हो रहे जगदीश्वर मिश्रा की जिंदगी में आखिर एक मौका आता है। पिछली फिल्म की तरह ही उसी एक मौके से जॉली के करिअर में परिवर्तन आता है। अपनी सादगी,ईमानदारी और जिद के साथ देश और समाज के हित वह मुकदमा जीतने के साथ एक मिसाल पेश करते हैं। जॉली एक तरह से देश का वह आम नागरिक है,जो वक्त पड़ने पर असाधारण क्षमताओं का परिचय देकर उदाहरण बनता है। हमारा नायक बन जाता है। सुभाष कपूर की संरचना सरल और सहज है। उन्होंने हमारे समय की आवश्यक कहानी को अपने पक्ष और सोच के साथ...