फिल्म समीक्षा : मिर्जिया
दो युगों की दास्तान -अजय ब्रह्मात्मज राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘ मिर्जिया ’ दो कहानियों को साथ लेकर चलती है। एक कहानी पंजाब की लोककथा मिर्जा-साहिबा की है। दूसरी कहानी आज के राजस्थान के आदिल-सूची की है। दोनों कहानियों का अंत एक सा है। सदियों बाद भी प्रेम के प्रति परिवार और समाज का रवैया नहीं बदला है। मेहरा इस फिल्म में अपनी शैली के मुताबिक दो युगों में आते-जाते हैं। ‘ रंग दे बसंती ’ उनकी इस शैली की कामयाब फिल्म थी। इस बार उनकी फिल्म दो कहानियों को नहीं थाम सकी है। दोनों कहानियों में तालमेल बिठाने में लेखक और निर्देशक दोनों फिसल गए हैं। अपारंपरिक तरीके से दो कहानियों का जोड़ने में वे ‘ रंग दे बसंती ’ की तरह सफल नहीं हो पाए हैं। गुलजार के शब्दों के चयन और संवादों में हमेशा की तरह लिरिकल खूबसूरती है। उन्हें राकेश ओमप्रकाश मेहरा आकर्षक विजुअल के साथ पेश करते हैं। फिल्म के नवोदित कलाकारो हर्षवर्धन कपूर और सैयमी खेर पर्दे पर उन्हें जीने की भरपूर कोशिश करते हैं। सभी की मेहनत के बावजूद कुछ छूट जाता है। फिल्म बांध नहीं पाती है। यह फिल्म टुकड़ों में अच्छी लगती है। द,...