फिल्म समीक्षा : हीरो
-अजय ब्रह्मात्मज पैकेजिंग और शोकेसिंग नए स्टारों की हीरो 1983 में सुभाष घई की फिल्म ‘ हीरो ’ आई थी। सिंपल सी कहानी थी। एक गुंडा टाइप लड़का पुलिस कमिश्नर की बेटी को अगवा करता है। लड़की की निर्भीकता और खूबसूरती उसे भती है। वह उससे प्रेम करने लगता है। लड़की के प्रभाव में वह सुधरने का प्रयास करता है। कुछ गाने गाता है। थोड़ी-बहुत लड़ाई होती है और अंत में सब ठीक हो जाता है। जैकी हीरो बन जाता है। उसे राधा मिल जाती है। ‘ था ’ और ‘ है ’ मैं फर्क आ जाता है। 2015 की फिल्म में 32 सालों के बाद भी कहानी ज्यादा नहीं बदली है। यहां सूरज है,जो राधा का अपहरण करता है। और फिर उसके प्रभाव में बदल जाता है। पहली फिल्म का हीरो जैकी था। दूसरी फिल्म का हीरो सूरज है। दोनों नाम फिल्म के एक्टर के नाम पर ही रखे गए हैं1 हिरोइन नहीं बदली है। वह तब भी राधा थी। वह आज भी राधा है। हां,तब मीनाक्षी शेषाद्रि राधा थीं। इस बार आथिया शेट्टी राधा बनी हैं। तात्पर्य यह कि 32 सालों के बाद भी अगर कोई फिल्मी कहानी प्रासंगिक हो सकती है तो हम समझ सकते हैं कि ...