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फिल्‍म समीक्षा : हेट स्‍टोरी 2

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज             यह पिछली फिल्म की सीक्वल नहीं है। वैसे यहां भी बदला है। फिल्म की हीरोइन इस मुहिम में निकलती हैं और कामयाब होती हैं। विशाल पांड्या की 'हेट स्टोरी 2' को 'जख्मी औरत' और 'खून भरी मांग' जैसी फिल्मों की विधा में रख सकते हैं। सोनिका अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेती है। विशाल पांड्या ने सुरवीन चावला और सुशांत सिंह को लेकर रोचक कहानी बुनी है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है कि अंत तक यह जिज्ञासा बनी रहती है कि वह मंदार से प्रतिशोध कैसे लेगी? सीक्वल और फ्रेंचाइजी में अभी तक यह परंपरा रही है कि उसकी कहानी, किरदार या कलाकार अगली फिल्मों में रहते हैं। 'हेट स्टोरी 2' में विशाल इस परंपरा से अलग जाते हैं। उन्होंने बिल्कुल नई कहानी और किरदार लिए हैं। उनके कलाकार भी नए हैं। इस बार सोनिका (सुरवीन चावला) किसी मजबूरी में मंदार (सुशांत सिंह) की चपेट में आ जाती है। भ्रष्ट, लोलुप और अत्याचारी मंदार उसे अपनी रखैल बना लेता है। वह उसकी निजी जिंदगी पर फन काढ़ कर बैठ जाता है। स्थिति इतनी...

संग-संग : सुशांत सिंह और मोलिना

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-अजय ब्रह्मात्मज - घर का मालिक कौन है? मोलिना - कभी सोचा नहीं। कभी कोई निर्णय लेना होता है तो इकटृठे ही सोचते हैं। सलाह-मशवरा तो होता ही है। अगर सहमति नहीं बन रही हो तो एक-दूसरे को समझाने की कोशिश करते हैं। जो अच्छी तरह से समझा लेता है उसकी बात चलती है। उस दिन वह मालिक हो जाता है। ऐसा कुछ नहीं है कि जो मैं  बोलूं वही सही है या जो ये बोलें वही सही है। सुशांत - हमने तो मालिक होने के बारे में सोचा ही नहीं। कहां उम्मीद थी कि कोई घर होगा। इन दिनों तो वैसे भी मैं ज्यादा बाहर ही रहता हूं। घर पर क्या और कैसे चल रहा है? यह सब मोलिना देखती हैं। कभी-कभी मेरे पास सलाह-मशविरे का भी टाइम नहीं होता है। आज कल यही मालकिन हैं। वैसे जब जो ज्यादा गुस्से में रहे, वह मालिक हो जाता है। उसकी चलती है। मोलिना - मतलब यही कि जो समझा ले जाए। चाहे वह जैसे भी समझाए। प्यार से या गुस्से से। सुशांत - मेरी पैदाइश बिजनौर की है। मैं पिता जी के साथ घूमता रहा हूं। बिजनौर तो केवल छुट्टियों में जाते थे। नैनीताल में पढ़ाई की। कॉलेज के लिए दिल्ली आ गया। किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। स्कूल से ही नाटकों का शौक था। ...

सुशांत सिंह:अक्षत प्रतिभा

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सत्या के पकिया ,कौन के चोर और जंगल के दुर्गाशंकर चौधरी...इन तीन फिल्मों के बाद ही दर्शकों ने सुशांत सिंह को पहचान लिया था.फिल्म इंडस्ट्री ने तो पहली ही फिल्म सत्या में महसूस कर लिया था कि एक प्रतिभा आ चुकी है.राम गोपाल वर्मा उन दिनों जिस ऐक्टर को छू देते थे उसे फिल्म इंडस्ट्री स्वीकार कर लेती थी.सुशांत सिंह के बारे में भी माना जा रहा था कि जंगल के बाद उनके पास काम की कमी नहीं रहेगी.संयोग कुछ ऐसा बना कि जंगल से फरदीन खान का कैरीअर तो सही ट्रैक पर आ गया,लेकिन जिसके बारे में उम्मीद की जा रही थी,उसे लोगों ने नज़रअंदाज कर दिया.चवन्नी को याद है कि जंगल की छोटी भूमिका को लेकर ही राजपाल यादव कितने उत्साहित थे.उनके उत्साह का असर ही था कि वे जल्दी ही मशहूर हो गए और अपनी एक जगह भी बना ली.आज वे पैसे और नाम के हिसाब से सुखी हैं,लेकिन काम के हिसाब से,,,?राजपाल ही सही-सही बता सकते हैं। अरे हम बात तो सुशांत सिंह की कर रहे थे.सुशांत को जंगल से झटका लगा होगा.यों कहें कि उनके पांव के नीचे की कालीन लेकर राजपाल यादव ले उड़े.सुशांत निराश भी हुए होंगे,लेकिन वे टूटे नहीं.चवन्नी की उनसे समय-समय पर मुलाक़ात होती ...