सम्मान भावना के खो चुके अर्थ तलाशें-महेश भट्ट
-महेश भट्ट अभी कुछ ही समय बीता है, जब सहारा वन चैनल के रियलिटी शो झूम इंडिया के आिखरी और निर्णायक एपीसोड के दौरान एक प्रतियोगी के कमेंट ने मुझे आहत किया। मैं तीन लोगों के निर्णायक मंडल में शामिल था। यह कमेंट भी प्रत्यक्ष तौर पर मेरे िखलाफ नहीं था, बावजूद इसके मैंने इस तरह की हरकतों का विरोध करना ठीक समझा और कार्यक्रम से वॉकआउट कर गया। मुझे एहसास हुआ कि भले ही मैं समाज की मूल्य प्रणाली को लेकर बहुत ज्यादा नहीं सोचता हूं, इस विषय को लेकर अधिक चिंतित नहीं रहता, फिर भी मैं इसी समाज का एक हिस्सा हूं। हमारी मूल्य प्रणाली में स्त्रियों और बुजुर्गो को सम्मान की नजर से देखा जाता है और इनके िखलाफ कुछ गलत होते देख मेरा मन मुझे कचोटने लगता है। इसलिए जब एक प्रतियोगी ने मेरे साथी निर्णायकों शबाना आजमी और आनंदजी भाई का उपहास उडाया, मुझे महसूस हुआ कि उसने एक मान्य सामाजिक व्यवहार की लक्ष्मण रेखा लांघी है और इसका विरोध किया जाना चाहिए। मानव समाज के इस सबसे मूल्यवान खजाने को बचाने, बनाए रखने और बढाने की कोशिश की जानी चाहिए, जिसमें एक व्यक्ति के सम्मान को बेहद अहमियत दी जाती है। जातिगत टिप्पणियों का विरो...