समकालीन सिनेमा(5) : डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी
डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी इन दिनों मैं कोई विदेशी सिनेमा देखता हूं या सीरियल देखता हूं तो कतई नहीं लगता है कि मैं कोई विदेशी सिनेमा देख रहा हूं, क्योंकि अब वह मेरे परिवेश का हिस्सा हो गया है। अब एडर्वटाइजमेंट देखता हूं तो उसमें विदेशी मॉडल है , टेलीविजन देखता हूं तो उसमें विदेशी मॉडल है। अब मैं अखबार खोलता हूं तो वहां पर विदेशी ¸ ¸ ¸ अब मैं जहां से दिन शुरू करता हूं,सभी विदेशी दिखते हैं। देशी-विदेशी का अंतर भी मिटता जा रहा है। बाजार उनके हाथ में जा रहा है। इस दौर में अगर हम भारत के सिनेमा की पहचान बना कर रख सकें तो अच्छा होगा। चाहने वाली बात है। यह मुमकिन है। ऐसा होगा कि नहीं होगा ऐसा कहना आज मुश्किल है। मुझे लगता है कि पिंजर बनाते समय मैं बाजार को इतना समझ नहीं रहा था। इसलिए वह भावना से प्रेरित फिल्म थी। उस समय मल्टीप्लेक्स की शुरूआत हुई थी। आज मल्टीप्लेक्स का चरम है। सितारे बहुत बड़े नहीं थे , कास्ट नहीं थी। अब कहीं न कहीं आपको सितार और कॉस्ट के तालमेल को बैठाना होगा। मेरे साथ समस्या रही है कि मेरा कैनवास बड़ा रहा है,कैरेक्टर और एक्टर से परे। उस कैनवास को...