Posts

Showing posts with the label सत्‍यमेव जयते

सत्‍यमेव जयते के निर्देशक सत्‍यजित भटकल

Image
  -अजय ब्रह्मात्‍मज  आमिर खान की प्रस्तुति सत्यमेव जयते के 13 एपीसोड पूरे हो गए। इस शो के इंपैक्ट के ऊपर भी उन्होंने एक एपिसोड शूट किया है, जो जल्द प्रसारित होगा। सत्यमेव जयते की पूर्णाहुति कर आमिर खान अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए निकल चुके हैं। वे शिकागो में धूम-3 की शूटिंग करेंगे। सत्यमेव जयते के निर्देशक सत्यजित भटकल का काम अभी समाप्त नहीं हुआ है। वे इसे समेटने में लगे हैं। सत्यमेव जयते से निकलने में उन्हें और उनकी टीम को वक्त लगेगा। पिछले ढाई-तीन सालों से वे अपनी टीम के साथ इस स्पेशल शो की तैयारियों, शोध, अध्ययन और प्रस्तुति में लगे रहे। उनकी मेहनत और सोच का ही यह फल है कि सत्यमेव जयते टीवी का असरकारी प्रोग्राम साबित हुआ। हालांकि ऊपरी तौर पर सारा क्रेडिट आमिर खान ले गए और यही होता भी है। टीवी हो या फिल्म.., उसके ऐंकर और कलाकारों को ही श्रेय मिलता है। सत्यमेव जयते भारतीय टीवी परिदृश्य का ऐसा पहला शो है, जिसने दर्शकों समेत ब्यूरोक्रेसी, सरकार और राजनीतिज्ञों को झकझोरा। सामाजिक मुद्दों और विषयों पर पहले भी शो आते रहे हैं, लेकिन सत्यमेव

सत्‍यमेव जयते-13 : अकेले व्‍यक्ति की शक्ति-आमिर खान

मैं अकेला क्या कर सकता हूं? एक अरब बीस करोड़ की आबादी में मैं तो बस एक हूं। अगर मैं बदल भी जाता हूं, तो इससे क्या फर्क पड़ेगा? बाकी का क्या होगा? सबको कौन बदलेगा? पहले सबको बदलो, फिर मैं भी बदल जाऊंगा। ये विचार सबसे नकारात्मक विचारों में से हैं। इन सवालों का सबसे सटीक जवाब दशरथ मांझी की कहानी में छिपा है। यह हमें बताती है कि एक अकेला आदमी क्या हासिल कर सकता है? यह हमें एक व्यक्ति की शक्ति से परिचित कराती है। यह हमें बताती है कि आदमी पहाड़ों को हटा सकता है। बिहार में एक छोटा सा गांव गहलोर पहाड़ों से घिरा है। नजदीकी शहर पहुंचने के लिए गांव वालों को पचास किलोमीटर घूम कर जाना पड़ता था, जबकि उसकी वास्तविक दूरी महज पांच किलोमीटर ही थी। दरअसल, शहर और गांव के बीच में एक पहाड़ पड़ता था, जिसका चक्कर लगाकर ही गांव वाले वहां पहुंच पाते थे। इस पहाड़ ने गहलोर के वासियों का जीवन नरक बना दिया था। एक दिन गांव में दशरथ मांझी नाम के व्यक्ति ने फैसला किया कि वह पर्वत को काटकर उसके बीच से रास्ता निकालेगा। अपनी बकरियां बेचकर उन्होंने एक हथौड़ा और कुदाल खरीदी और अपने अभियान में जुट गये। गांव वाले उन पर

सत्‍यमेव जयते-12 : हाथ से फिसलते हालात-आमिर खान

Image
जब मानव अंतरिक्ष के बाहर जीवन के लक्षणों की तलाश करता है तो सबसे पहले क्या देखता है? वह देखता है जल का अस्तित्व। किसी भी ग्रह में जल की उपस्थिति से यह संकेत मिलता है कि वहां जीवन संभव है। जाहिर है कि जल का अर्थ जीवन है और जीवन का अर्थ जल। हमारी पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग जल में डूबा है, लेकिन इस जल का अधिकांश हिस्सा खारा है। 97 प्रतिशत जल समुद्र के रूप में है, जो पीने के योग्य नहीं है। शेष तीन प्रतिशत जल ही मीठा है, जो बर्फ के रूप में है। दूसरे शब्दों में कहें तो मात्र एक प्रतिशत जल ही सात अरब की मानव आबादी के लिए पेयजल के रूप में उपलब्ध है। केवल मानव आबादी ही नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतुओं के लिए भी यही जल जीने का सहारा है। भारत के बारे में यह माना जाता है कि यहां पानी पर्याप्त मात्र में उपलब्ध है। इसका अर्थ है कि हम जितना चाहें उतना पानी हासिल कर सकते हैं, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है कि प्रति वर्ष पानी की यह उपलब्धता घटती जा रही है। अब लगभग पूरे देश में जल संकट की आहट महसूस की जाने लगी है। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण भारत में रहने वाली एक महिला को पानी हासिल करने के

सत्‍यमेव जयते-11: सम्मान के साथ सहारा भी दें-आमिर खान

Image
मुङो लगता है कि भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों या समाजों में शामिल है जहां सांस्कृतिक और पारंपरिक रूप से बुजुर्गो को बहुत अधिक सम्मान दिया जाता है। भारत संभवत: एकमात्र देश है जहां हम बड़ों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए उनके पैर छूते हैं। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि व्यावहारिक स्तर पर और अपने बुनियादी ढांचे के लिहाज से हम अपने बुजुर्गो की देखभाल के मामले में अन्य देशों से बहुत पीछे हैं। भारतीय समाज बदल रहा है और धीरे-धीरे हम संयुक्त परिवार की संस्कृति से एकल परिवारों की ओर बढ़ रहे हैं और इसके साथ ही अपने परिवार में बड़े-बूढ़ों के प्रति हमारे संबंध भी बदल रहे हैं। आज जो व्यक्ति किसी बड़े शहर में काम-धंधे के सिलसिले में रह रहा है उसके समक्ष बहुत चुनौतियां हैं। उसके पास खुद के लिए, अपने छोटे से परिवार के लिए बहुत कम समय है। इस बदलते परिदृश्य में गौर कीजिए कि हमारे बड़े-बुजुर्गो के साथ क्या होता है? हम उनके लिएक्या करते हैं?हमें अपने बुजुर्गो के लिए बेहतर योजना बनाने की आवश्यकता है और सच कहें तो खुद अपने लिए भी, क्योंकि देर-सबेर हम सभी को उस स्थिति में पहुंच

सत्‍यमेव जयते-10 : समानता का अधूरा सपना-आमिर खान

Image
अनेक ऐसी बातें हैं जो महात्मा गांधी को उनके समकालीन स्वतंत्रता सेनानियों तथा नेताओं से अलग करती हैं। इनमें से एक बात यह है कि उन्होंने आजादी के संघर्ष के साथ-साथ एक अन्य चीज को बराबर का महत्व दिया और यह थी समाज में नीचे के स्तर पर समझी जाने वाली जातियों के लोगों को बराबरी पर लाने का प्रयास। अस्पृश्यता के खिलाफ गांधीजी का कार्य हमारी आजादी के पांच दशक पहले दक्षिण अफ्रीका से ही आरंभ हो गया था। जब वह भारत लौटे तो उनसे जुड़ी एक घटना ही यह बताने के लिए काफी है कि उन्होंने समानता के विचार को कितना महत्व दिया। यह वर्ष 1915 की बात है। गांधीजी के एक निकट सहयोगी ठक्कर बप्पा ने एक दलित दुधा भाई को आश्रम में रहने के लिए भेजा। कस्तूरबा समेत हर कोई उन्हें आश्रम में रखने के खिलाफ था। गांधीजी ने यह साफ कर दिया कि दुधा भाई आश्रम नहीं छोड़ेंगे और जो लोग इससे सहमत नहीं हैं वे खुद आश्रम छोड़कर जाने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्हें यह भी बताया गया कि कोई भी उनकी बात से सहमत नहीं होगा और यहां तक कि आश्रम को मिलने वाली आर्थिक सहायता भी बंद हो सकती है। इसका भी गांधीजी पर कोई असर नहीं पड़ा। गांधीजी

सत्‍यमेव जयते-9 : जिंदगी को जोखिम में न डालें-आमिर खान

Image
आग हमें गर्मी देती है, किंतु जलाती भी है। इसे हम अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं, किंतु कभी इसके इतने करीब नहीं जाते कि जल जाएं। जैसे ही हम इसके करीब जाते हैं हमारी इंद्रियां हमें खतरे का बोध करा देती हैं। शराब भी इससे अलग नहीं है। वास्तव में, शराब में आग के गुण तो नहीं हैं, किंतु नुकसान सारे हैं। अगर अधिक नहीं तो शराब आग जितनी विनाशक जरूर है। देश के सभी राज्यों में शराब ने हजारों-लाखों परिवारों को बर्बाद कर दिया है। यह एक रोग है, जिससे संक्रमित तो आम तौर पर परिवार का एक ही सदस्य होता है, किंतु गाज पूरे परिवार पर गिरती है। यह रोग घरेलू हिंसा को बढ़ाता है..बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करती है..बेरोजगारी को बढ़ाता है। ये तो नुकसान के कुछ उदाहरण भर हैं। जब मैंने शराबखोरी के लिए रोग शब्द का इस्तेमाल किया तो मैं इसे हल्के में नहीं ले रहा था। आज अध्ययनों से पता चलता है कि शराबखोरी कोई बुरी आदत नहीं, बल्कि एक बीमारी है। हममें से कुछ के शराब की गिरफ्त में आने की संभावना रहती है और जब ऐसे लोग इसे पीना शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे वे अधिकाधिक पीते चले जाते हैं और एक समय ऐसी नौबत

सत्‍यमेव जयते-7 : घरेलू हिंसा की त्रासदी-आमिर खान

Image
अगर हमारे समाज का कोई वर्ग दूसरे वर्ग पर हमले करने लगे तो पुलिस इसे दंगा करार देती है, रैपिड एक्शन फोर्स तलब कर ली जाती है और हिंसा के शिकार लोगों की सहायता के लिए उचित कदम उठाते हुए तुरंत सरकारी मशीनरी सक्रिय हो जाती है और जरूरतमंदों को हिंसा से बचाती है। इसके बाद सरकार शरणार्थी शिविर तैयार कर प्रभावितों को पुनस्र्थापित करती है। जब हमने घरेलू हिंसा पर शोध किया तो ठीक यही स्थिति घरों में भी देखने को मिली। हमारे समाज का एक वर्ग दूसरे वर्ग की पिटाई करता है, उस पर हमले करता है। ये गृहयुद्ध सरीखे हालात हैं। अंतर महज इतना है कि घरों में उत्पीड़न का शिकार होने वाली महिलाओं को बचाने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स तैनात नहीं की जाती। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा योजना आयोग द्वारा दो अलग-अलग अध्ययनों से खुलासा होता है कि 40 फीसदी से 80 फीसदी के बीच महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। हम इसके औसत को कुछ कम करते हुए 50 फीसदी मान सकते हैं। यह भी विशाल आंकड़ा है। यानी हर दो महिलाओं में से एक महिला की पति या बेटों द्वारा पिटाई होती है। खेद की बात है कि यह आंकड़ा पुरुषों के बारे

सत्‍यमेव जयते-6 : जीडीपी बढ़ाने की सरल राह-आमिर खान

Image
अमेरिका में 12 प्रतिशत आबादी अशक्त-विकलांग के रूप में गिनी जाती है। इंग्लैंड में यह प्रतिशत 18 है तो जर्मनी में 9 प्रतिशत लोग विकलांग की श्रेणी में आते हैं। भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार दो प्रतिशत लोग विकलांग की श्रेणी में आते हैं। विकलांग लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहन देने वाले केंद्र एनसीपीईडीपी के जावेद अबीदी इन आंकड़ों के संदर्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाते हैं। भारतीय वातावरण अथवा माहौल में ऐसी क्या खास बात है कि हमारे यहां दुनिया के अन्य देशों की तुलना में केवल 1/10 अथवा 1/5 अशक्त लोग ही हैं। क्या इस मामले में अपने देश में हुई गिनती में कोई खामी हुई है? यह चौंकाने वाली बात है कि 2000 तक यानी आजादी के 53 साल बाद भी भारत की जनगणना रिपोर्ट में एक भी अशक्त व्यक्ति नहीं गिना गया। दूसरे शब्दों में कहें तो जो लोग अपने देश में नीतियों का निर्धारण करते हैं, फैसले लेते हैं, सरकारी योजनाओं के लिए धन का आवंटन करते हैं उनके दिमाग में विकलांगों का अस्तित्व ही नहीं है। साफ है कि हम उनके लिए कुछ नहीं करते हैं। लिहाजा आजादी के बाद पहले 53 वर्षो तक हम

सत्‍यमेव जयते-5: इस आजादी को मत छीनें-आमिर खान

Image
मुझे स्वीकार करना होगा कि जब मैं अपनी टीम के साथ सत्यमेव जयते के 13 विषय चुनने बैठा तो मैं प्रेम के प्रति असहनशीलता विषय को शामिल न करने के मुद्दे पर बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया था। मुझे लगा था कि समाज और बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दों से जूझ रहा है। हालांकि मैंने अपनी टीम के सदस्यों, जिनकी सोच मेरी सोच से अलग थी, के बहुमत के सामने समर्पण कर दिया। भारत बदल रहा है..हमारी आबादी का एक बड़ा वर्ग युवा है..युवाओं को अपनी खुद की पसंद का अधिकार है और अब वे इस अधिकार को पाने के लिए खुलकर सामने आने लगे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी, शहरी, ग्रामीण..यह मुद्दा हर घर में ज्वलंत समस्या बना हुआ है या फिर देर-सबेर हर घर को इस मुद्दे से जूझना होगा..!!! साथियों की इन दमदार दलीलों के सामने मैंने हथियार डाल दिए। तो अब मुद्दे पर आते हैं-प्रेम है क्या? प्रेम पर अनंत कविताएं, गीत, कहानियां, उपन्यास, निबंध और नाटक लिखे गए हैं और अधिकांश फिल्मों का विषय प्रेम ही है। हम सब प्रेम को अपनी-अपनी नजर से देखते हैं। अलग-अलग लोगों के लिए इसके अलग-अलग मायने हैं, किंतु इस बात से शायद ही कोई असहमत हो कि प्रजनन

सत्‍यमेव जयते- 4:स्वस्थ समाज का सपना-आमिर खान

Image
मैं सपने देखना पसंद करता हूं और यह उन कारणों में से एक है कि मैं सत्यमेव जयते शो कर पाया हूं। मेरा सपना है कि एक दिन हम ऐसे देश में रह रहे होंगे जहां चीजें बदली हुई होंगी। मेरा स्वप्न है कि एक दिन अमीर और गरीब एक ही तरह स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाएंगे। बहुत से लोगों को यह दृष्टिकोण पूरी तरह अव्यावहारिक लग सकता है, किंतु यह सपना देखने लायक है। और ऐसा कोई कारण नहीं है कि यह पूरा न हो सके। कोई अमीर हो या गरीब, किसी प्रिय को खोने का दुख, दोनों को बराबर होता है। अगर कोई बच्चा ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसका इलाज संभव है, किंतु हम पैसे के अभाव में उसका इलाज न करा पाने के कारण उसे अपनी आंखों के सामने मरता हुए देखने को मजबूर हैं तो इससे अधिक त्रासद कुछ नहीं हो सकता। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का डेढ़ फीसदी से भी कम सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बरसों से काम करने वाले और हमारे शो में आए एक मेहमान डॉ. गुलाटी का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में जीडीपी का कम से कम छह फीसदी खर्च होना चाहिए। मैं न तो अर्थशास्त्री हूं और न ही डॉक्टर, फिर भी

सत्‍यमेव जयते-3: एक दिन का तमाशा : आमिर खान

Image
  विवाह जीवन का बेहद महत्वपूर्ण अंग है। यह साझेदारी है। इस मौके पर आप अपना साथी चुनते हैं, संभवत: जीवन भर के लिए। ऐसा साथी जो आपकी मदद करे, आपका समर्थन करे। हम शादी को जिस नजर से देखते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। शादी को लेकर हमारा क्या नजरिया है, इस पर हमारा जीवन निर्भर करता है। आज मैं मुख्य रूप से नौजवानों का ध्यान खींचना चाहता हूं। जो शादीशुदा हैं, वे अच्छा या बुरा पहले ही अपना चुनाव कर चुके हैं। भारत में हम शादी के नाम पर कितनी भावनाएं, सोच, कितना समय और कितना धन खर्च करते हैं! विवाह के एक दिन के तमाशे पर हम न केवल अपनी जमापूंजी लुटा देते हैं, बल्कि अकसर कर्ज भी लेना पड़ जाता है, किंतु क्या हम ये सारी भावनाएं, समय, प्रयास और धन विवाह में खर्च करते हैं? मेरे ख्याल से नहीं। असल में, हम इन तमाम संसाधनों को अपने विवाह में नहीं, बल्कि अपने विवाह के दिन पर खर्च करते हैं। बड़े धूमधाम से शादी विवाह के अवसर पर अकसर यह जुमला सुनने को मिलता है। विवाह उत्सव को सफल बनाने के लिए हम तन-मन-धन से जुटे रहते हैं। मैं उस दिन कैसा लगूंगा? समाज मुझे और मेरे साथी को कितना पसंद करेगा? लोग

बाल यौन शोषण : इस यातना की अनदेखी न करें- आमिर खान

Image
बच्चों के यौन शोषण की घटनाओं पर शोध के दौरान मुझे एक बड़ी सीख तब मिली जब मैंने अपनी विशेषज्ञ डॉ. अनुजा गुप्ता से पूछा कि यौन शोषण का शिकार होने के बाद भी बच्चे अपने मां-बाप से उसके बारे में बताने में कठिनाई महसूस क्यों करते हैं? उनका जवाब था, क्या हम बच्चों की सुनते हैं? क्या हम उनकी बात सुनने के लायक हैं? और यह वास्तव में एक बड़ा सवाल है। मेरा अपने बच्चों के साथ क्या संबंध है? क्या मैं अपने बच्चों से उनकी परेशानियां पूछता हूं? क्या वास्तव में बच्चों की बात सुनता हूं? क्या मैं जानता हूं कि मेरे बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है? क्या मैं उसके भय, सपनों, उम्मीदों के बारे में जानता हूं? क्या वास्तव में मैं यह सब जानना भी चाहता हूं। क्या मैं अपने बच्चों का दोस्त हूं? यद्यपि पहली पीढ़ी की तुलना में हमारी पीढ़ी बच्चों के साथ अधिक बातचीत करती है। या कम से कम हम ऐसा मानना पसंद करते हैं..फिर भी हममें से कितने हैं जो अपने बच्चों के साथ मजबूती से जुड़े हैं? हममें से कितनों के पास एक स्वस्थ संबंध के लिए जरूरी समय और सोच है? सच्चाई यह है कि अगर आपका अपने बच्चों के साथ स्वस्थ संवाद

बेशकीमतीहैं बच्चियां-आमिर खान

दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्‍ठ पर आमिर खान का यह लेख प्रकाशित हुआ है। सत्‍यतेव जयते' की हर कड़ी के बाद वे उसमें उठाए गए विषय प‍र निखेंगे। चवन्‍नी की कोशिश है कि हर लेख यहां उसके पाठकों को अपनी सुविधा से पढ़ने के लिए मिलें। लड़कों अथवा पुरुषों में ऐसा क्या है जो हमें इतना अधिक आकर्षित करता है कि हम एक समाज के रूप में सामूहिक तौर पर कन्याओं को गर्भ में ही मिटा देने पर आमादा हो गए हैं। क्या लड़के वाकई इतने खास हैं या इतना अधिक अलग हैं कि उनके सामने लड़कियों की कोई गिनती नहीं। हमने जब यह पता लगाने के लिए अपने शोध की शुरुआत की कि क्यों वे अपनी संतान के रूप में लड़की के बजाय लड़का चाहते हैं तो मुझे जितने भी कारण बताए गए उनमें से एक भी मेरे गले नहीं उतरा। उदाहरण के लिए किसी ने कहा कि यदि हमारे लड़की होगी तो हमें उसकी शादी के समय दहेज देना होगा, किसी की दलील थी कि एक लड़की अपने माता-पिता अथवा अन्य परिजनों का अंतिम संस्कार नहीं कर सकती। किसी ने कहा कि लड़की वंश अथवा परिवार को आगे नहीं ले जा सकती आदि-आदि। ये सभी हमारे अपने बनाए हुए कारण हैं। हमने खुद दहेज की प्रथा रची और अब यह

आमिर का सत्यमेव जयते

  -अजय ब्रह्मात्‍मज तारीख निश्चित हो चुकी है। दो सालों से चल रहा कयास समाप्त हो गया है। आमिर खान प्रोडक्शन के टीवी शो सत्यमेव जयते का प्रसारण 6 मई से स्टार प्लस पर आरंभ होगा। स्टार प्लस के साथ ही दूरदर्शन पर आने से इसे देश के दूर-दराज इलाकों में बसे दर्शक भी देख सकेंगे। आमिर खान ने अपनी पसंद से सुबह 11 बजे का समय लिया है। इन दिनों टीवी पर संडे की सुबह का समय प्राइम टाइम नहीं माना जाता। आमिर खान को इससे मतलब नहीं है। उन्हें महाभारत, रामायण और चाणक्य के दिन याद हैं। सारा परिवार एक साथ बैठकर टीवी देखता था। जिनके घरों में टीवी नहीं थे, वे पड़ोस में देख आया करते थे। आमिर खान को पूरी उम्मीद है कि अगर कार्यक्रम अच्छा होगा तो दर्शक संडे की सुबह को फिर से प्राइम टाइम बना देंगे। वैसे, इसकी शुरुआत डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी के धारावाहिक उपनिषद गंगा से हो चुकी है। यह संडे को सुबह दस बजे प्रसारित होता है। आमिर खान के टीवी शो सत्यमेव जयते का निर्देशन सत्यजित भटकल कर रहे हैं। आमिर खान और सत्यजित स्कूल के दिनों के दोस्त हैं। लगान के समय आमिर खान के आह्वान पर सत्यजित ने अपनी जमी-जमाई