फिल्म समीक्षा : रंगून
फिल्म रिव्यू युद्ध और प्रेम रंगून -अजय ब्रह्मात्मज युद्ध और प्रेम में सब जायज है। युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी प्रेमकहानी में भी सब जायज हो जाना चाहिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बैकड्रॉप में बनी विशाल भारद्वाज की रंगीन फिल्म ‘ रंगून ’ में यदि दर्शक छोटी-छोटी चूकों को नजरअंदाज करें तो यह एक खूबसूरत फिल्म है। इस प्रेमकहानी में राष्ट्रीय भावना और देश प्रेम की गुप्त धार है, जो फिल्म के आखिरी दृश्यों में पूरे वेग से उभरती है। विशाल भारद्वाज ने राष्ट्र गान ‘ जन गण मन ’ के अनसुने अंशों से इसे पिरोया है। किसी भी फिल्म में राष्ट्रीय भावना के प्रसंगों में राष्ट्र गान की धुन बजती है तो यों भी दर्शकों का रक्तसंचार तेज हो जाता है। ‘ रंगून ’ में तो विशाल भारद्वाज ने पूरी शिद्दत से द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में आजाद हिंद फौज के हवाले से रोमांचक कहानी बुनी है। बंजारन ज्वाला देवी से अभिनेत्री मिस जूलिया बनी नायिका फिल्म प्रोड्रयूसर रूसी बिलमोरिया की रखैल है, जो उसकी बीवी बनने की ख्वाहिश रखती है। 14 साल की उम्र में रूसी ने उसे मुंबई...