दरअसल : वीकएंड के बाद न फिसलें फिल्में
- अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों गए जमाने के एक पीआरओ से बात हो रही थी। पीआरओ मतलब फिल्म के प्रचार की जिम्मेदारी संभालने वाला व्यक्ति। इन दिनों उन्हें अलग-अलग नाम दिए जाने लगे हैं। पीआरओ का मुख्य काम होता है फिल्म की पब्लिसिटी देखना। पहले टीवी नहीं था। रेडियो का भी इतना जोर नहीं था। अखबारों में फिल्मों के केवल रिव्यू आते थे। कुछ फिल्म पत्रिकाएं होती थीं। उन पत्रिकाओं में फिल्म के स्टारों के इंटरव्यू और बाकी संबंधित सामग्रियां प्रकाशित होती थीं। सभी चीजें इस तरह से नियोजित की जाती थीं कि फिल्म की रिलीज और उसके बाद भी हवा बनी रहे। दर्शक फिल्में देखने आएं। उन्होंने बताया कि फिल्म की रिलीज के बाद भी हमारा काम जारी रहता था , क्योंकि फिल्में अलग-अलग टैरिटरी में अलग-अलग समय पर सिल्वर और गोल्डन जुबली मनाया करती थीं। वे आजकल के पीआरओ से ईष्र्या कर रहे थे कि उनका काम फिल्म की रिलीज के दो -चार हफ्ते पहले से आरंभ होता है और रिलीज के वीकएंड के साथ समाप्त हो जाता है। वजह यही है कि शायद ही कोई फिल्म वीकएंड के बाद थिएटर में सरवाइव करती है। यहां तक कि 100 करोड़ की कमाई की फिल्में