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दरअसल : हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का विकेंद्रीकरण

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-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों पटना में आयोजित लिटरेचर फेस्टिवल में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री(बॉलीवुड) के विकेंद्रीकरण पर बातें हुईं। सुधीर मिश्र, तिग्मांशु धूलिया और पीयूष झा ने अपने अनुभवों को साझा किया। इस विमर्श में मुझे भी कुछ बोलने और समझने का मौका मिला। फिल्म पत्रकारिता के अपने अनुभवों और फिल्म बिरादरी के सदस्यों से हुई निरंतर मुलाकातों के आधार पर मेरी दृढ़ धारणा है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री शातिर तरीके से बंटी हुई है। इंडस्ट्री की स्थापित हस्तियां हमेशा वकालत करती हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री एक बड़ा परिवार है, जिसमें सारे सदस्य समान हैं। कोई भेदभाव नहीं बरता जाता। सभी को बराबर मौके मिलते हैं। यह बात सुनने में अच्छी लगती है। ऊपरी तौर पर यह सच भी लगता है, लेकिन कभी भी सतह को हिला कर देखें तो अंदर विभाजन की कई दीवारें नजर आती हैं। यह विभाजन धर्म, जाति(नेशन), इलाका, प्रदेश और भाषा से निर्धारित है। क्या वजह है कि पिछले सौ सालों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हिंदी प्रदेशों के नायक और नायिकाओं का प्रतिशत गौण है।     आजादी के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के तीन प्रमुख निर...