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फिल्‍म समीक्षा : वन नाइट स्‍टैंड

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क्षणिक सुख अंतिम सच नहीं -अमित कर्ण मौजूदा युवा वर्ग रिश्‍तों से जुड़े कठिन सवालों से चौतरफा घिरा हुआ है। वे प्यार चाहते हैं, पर समर्पण एकतरफा रहने की अपेक्ष करते हैं। कई युवक-युवतियां प्यार, आकर्षण व भटकाव के बीच विभेद नहीं कर पा रहे हैं। ढेर सारे लोग बेहद अलग इन तीनों भावनाओं को एक ही चश्‍मे से देख रहे हैं। यह फिल्म उनके इस अपरिपक्व नजरिए व उससे उपजे नतीजों को सबके समक्ष रखती है। यह साथ ही शादीशुदा रिश्‍ते के प्रति लोगों की वफादारी में आ रही तब्दीली की वस्‍तुस्थिति से अवगत करवाती है। यह उनकी लम्हों में की गई खता के परिणाम की तह में जाती है। हिंदी सिने इतिहास में ऐसा कम हुआ है, जब मर्द की बेवफाई को औरत की नजर से पेश किया गया हो। उस कसूर को औरत के नजरिए से सजा दी गई हो। जैसा ‘कभी अलविदा ना कहना’ में था। इस फिल्म की निर्देशक जैस्मिन मोजेज डिसूजा यहां वह कर पाने में सफल रही हैं। इस फिल्म का संदेश बड़ा सरल है। वह यह कि क्षणिक सुख को अंतिम सत्य न माना जाए।     कहानी शादीशुदा युवक उर्विल, अजनबी सेलिना के भावनाओं में बहकर जिस्मानी संबंध बना लेने से शुरू होती है। ...