फिल्म समीक्षा : वज़ीर
चुस्त और रोमांचक -अजय ब्रह्मात्मज अमिताभ बच्चन को पर्दे पर मुक्त भाव से अभिनय करते देखना अत्यंत सुखद अनुभव होता है। ‘ वजीर ’ देखते हुए यह अनुभव गाढ़ा होता है। निर्देशक बिजॉय नांबियार ने उन्हें भरपूर मौका दिया है। फिल्म देखते हुए ऐसा लगता है कि निर्देशक ने उन्हें टोकने या रोकने में संकोच किया है। अदाकारी की उनकी शोखियां अच्छी लगती हैं। भाषा पर पकड़ हो और शब्दों के अर्थ आप समझते हों तो अभिनय में ऐसी मुरकियां पैदा कर सकते हैं। फरहान अख्तर भी फिल्म में प्रभावशाली हैं। अगर हिंदी बोलने में वे भी सहज होते तो यह किरदार और निखर जाता। भाषा पर पकड़ और अभिनय में उसके इस्तेमाल के लिए इसी फिल्म में मानव कौल को भी देख सकते हैं। अभी हम तकनीक और बाकी प्रभावों पर इतना गौर करते हैं कि सिनेमा की मूलभूत जरूरत भाषा को नजरअंदाज कर देते हैं। इन दिनों हर एक्टर किरदारों के बाह्य रूप पर ही अधिक मेहनत करते हैं। ...