फिल्म समीक्षा : लेकर हम दीवाना दिल
-अजय ब्रह्मात्मज दक्षिण मुंबई और दक्षिण दिल्ली के युवक-युवतियों के लिए बस्तर और दांतेवाड़ा अखबारों में छपे शब्द और टीवी पर सुनी गई ध्वनियां मात्र हैं। फिल्म के लेखक और निर्देशक भी देश की कठोर सच्चाई के गवाह इन दोनों स्थानों के बारे में बगैर कुछ जाने-समझे फिल्म में इस्तेमाल करें तो संदर्भ और मनोरंजन भ्रष्ट हो जाता है। 'लेकर हम दीवाना दिल' में माओवादी समूह का प्रसंग लेखक-निर्देशककी नासमझी का परिचय देता है। मुंबई से भागे प्रेमी युगल संयोग से यहां पहुंचते हैं और माओवादियों की गिरफ्त में आ जाते हैं। माओवादियों ने एक फिल्म यूनिट को भी घेर रखा है। उन्हें छोडऩे के पहले वे उनसे एक आइटम सॉन्ग की फरमाइश करते हैं। हिंदी फिल्मों में लंबे समय तक आदिवासियों और बंजारों का कमोबेश इसी रूप में इस्तेमाल होता रहा है। माओवादी 21वीं सदी की हिंदी फिल्मों के आदिवासी और बंजारे हैं। 'लेकर हम दीवाना दिल' आरिफ अली की पहली फिल्म है। आरिफ अली मशहूर निर्देशक इम्तियाज अली के भाई हैं। अभिव्यक्ति के किसी भी कला माध्यम में निकट के म...