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‘पार्च्ड’: ‘सूखी ज़मीन’ पर तिरछी डगर ले चली ‘नदियों’ की कहानी

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लीना यादव की 'पार्च्‍ड' राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि में चार औरतों की कहानी है। खिखलाहट और उम्‍मीद की यह कहानी झकझोरती है। शहरी दर्शकों 'पिंक' को समझ पाते हैं। उनके लिए 'पार्च्‍ड' ओझल सच्‍चाई है। 'पार्च्‍ड' पर विभावरी ने लिखा है। उम्‍मीद है कि और भी लेख मिलेंगे...         -विभावरी यह फिल्म सिर्फ़ उन चार औरतों की कहानी नहीं है जिनके इर्द-गिर्द इसे बुना गया है...यह इस देश, इस दुनिया की उन तमाम औरतों की कहानी है जिन्होंने नहीं जाना कि, घुटन भरी ज़िंदगी की क़ैद के बाहर की हवा कितनी खुशनुमा हो सकती है!! जिन्होंने नहीं जाना कि उनकी उदास चीखों के बाहर भी एक दुनिया बसती है...जहाँ खुशियों की खिलखिलाहट है!! जिन्होंने नहीं जाना कि उनका खुद का शरीर भी एक उत्सव है...प्रेम के चरागों से रौशन उत्सव!! दरअसल फिल्म चार केन्द्रीय स्त्री- चरित्रों के मार्फ़त हमारे समाज की उस मानसिकता से रूबरू कराती है जहाँ औरत महज एक देह है. एक देह जिसे पितृसत्ता जब चाहे खरीद और बेच सकती है...फिर वह शादी जैसी संस्था की आड़ में हो या ‘ बाजारू औरत ’ होने के तमगे की आड़ में! हाँ, अपने ही...

फिल्‍म समीक्षा : पार्च्‍ड

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फिल्‍म रिव्‍यू अनगिन औरतों में से तीन पार्च्‍ड -अजय ब्रह्मात्‍मज एक साल से भिन्‍न देशों और फिल्‍म फेस्टिवल में दिखाई जा रही लीना यादव की ‘ पार्च्‍ड ’ अब भारत में रिलीज हुई है। ‘ शब्‍द ’ और ‘ तीन पत्‍ती ’ का निर्देशन कर चुकी लीना यादव की यह तीसरी फिल्‍म है। इस फिल्‍म में बतौर फिल्‍मकार वह अपने सिग्‍नेचर के साथ मौजूद हैं। सृजन के हर क्षेत्र में कते रहते हैं। लीना यादव ने तन,मन और धन से अपनी मर्जी की फिल्‍म निर्देशित की है और यह फिल्‍म खूबसूरत होने के साथ यथार्थ के करीब है। ‘ पार्च्‍ड ’ के लिए हिंदी शब्‍द सूखा और झुलसा हो सकता है। राजस्‍थान के एक गांव की तीन औरतों की सूखी और झुलसी जिंदगी की यह कहानी उनके आंतरिक भाव के साथ सामाजिक व्‍यवस्‍था का भी चित्रण करती है। 21 वीं सदी में पहुंच चुके देश में कई समाज और गांव आज भी सदियों पीछे जी रहे हैं। उनके हाथों में मोबाइल आ गया है। टीवी और डिश एंटेना आ रहा है,लेकिन पिछड़ी सोच की जकड़न खत्‍म नहीं हो रही है। पुरुषों के कथित पौरुष ने परंपरा और नैतिकता का ऐसा जाल बिछा रखा है कि औरते लहूलुहान हो रही हैं। लीना यादव की ‘ पार्च्‍ड ’ ...

उम्‍मीद अभी बाकी है - लीना यादव

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-अजय ब्रह्मात्‍मज 2012 में लीना यादव आस्‍ट्रेलिया के ‘ एशिया पैसिफिक स्‍क्रीन अवार्ड ’ की ज्‍यूरी के लिए चुनी गई थीं। वहां जाने के दो हफ्ते पहले उन्‍हें जानकारी मिली कि अवार्ड की संस्‍था ज्‍यूरी मेंबर रह चुके फिल्‍मकारों को नए प्रोजेक्‍ट के लिए फंड करती है। संयोग ऐसा रहा कि लीना यादव उन्‍हीं दिनों तनिष्‍ठा के साथ किसी फिल्‍म के बारे में सोच रही थीं। तनिष्‍ठा ने उन्‍हें ‘ जल ’ की शूटिंग के दौरान के कुछ किस्‍से सुनाए। लीना ने महसूस केया कि उन किस्‍सों को लकर फिल्‍म बनाई जा सकती है। खास कर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने जिस साफगोई और ईमानदारी से सेक्‍स की बातें की थीं,वह शहरी महिलाओं के बीच दुर्लभ है। लीना यादव की फिल्‍म ‘ पार्च्‍ड ’ की शुरूआत यहीं से हुई। फिल्‍म के पहले ही ड्राफ्ट के समय ही रिसर्च से लीना को लगा कि वह गांव की कहानियों में शहरों की बातें ही लिख रही हैं। उन्‍होंने द्वंद्व महसूस किया, ’ आखिर क्‍या बात है कि सूचना और शिक्षा के बावजूद शहरी औरतें कुछ बोल नहीं पा रही हैं,जबकि ग्रामीण औरतें निस्‍संकोच बोल रही हैं ?’ लीना ने अपनी स्क्रिप्‍ट देश-विदेश के दोस्‍तों क...

फिल्‍म समीक्षा : तीन पत्‍ती

नयी और अलग सी प्रचलित और सामान्य फिल्मों की शैली से अलग है तीन पत्ती। इसके दृश्य विधान में नवीनता है। इस में हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे खांचों में बंधे चरित्र नहीं हैं। फिल्म की कहानी भी अलग सी है। एकेडमिक जगत, छल-कपट और लालच की भावनाएं और उन्हें चित्रित करने की रोमांचक शैली के कारण फिल्म उलझी और जटिल लग सकती है। व्यंकट सुब्रमण्यम मौलिक गणितज्ञ हैं। वे गणित में प्रोबैबिलिटी के समीकरण पर काम कर रहे हैं। अपनी धारणाओं को आजमाने के लिए वे तीन पत्ती के खेल का सहारा लेते हैं। उनका लक्ष्य एकेडमिक है, लेकिन उनके साथ आए प्रोफेसर शांतनु और चार स्टूडेंट धन के लालच में हैं। इस लालच की वजह से उनके रिश्ते और इरादे में बदलाव आता है। आइजक न्यूटन अवार्ड लेने लंदन पहुंचे व्यंकट सुब्रमण्यम वहां के गणितज्ञ पर्सी से मन का भेद खोलते हैं। फिल्म प्ऊलैशबैक और व‌र्त्तमान मे ं चलने लगती है। वे उस कचोट का भी जिक्र करते हैं, जिसकी वजह से वे खुद को इस अवार्ड का हकदार नहीं मानते। फिल्म के अंत में हम देखते हैं कि उनके साथ छल करने वाला व्यक्ति ही उन्हें अवार्ड दिलवा कर प्रायश्चित करता है। आखिरकार तीन पत्...