जो नहीं है उसे पर्दे पर तलाशते हैं लोग-महेश भट्ट
कुछ साल पहले की बात है। ब्रिटेन के एक अंग्रेजी रियैलिटी शो बॉलीवुड स्टार का मैं जज था। बॉलीवुड में अभिनेत्री बनने की लालसा से एक गोरी लडकी शो में हिस्सा लेने आई थी। मैंने उससे पूछा, तुम हॉलीवुड के बजाय बॉलीवुड में क्यों काम करना चाहती हो? उसने बेहिचक कहा, क्योंकि उसकी फिल्में रोमैंटिक होती हैं। हॉलीवुड के लेखक-निर्देशक हर फिल्म को यथार्थवादी बना देते हैं। मैं सप्ताहांत में पाकिस्तानी, ग्रीक या रूसी दोस्तों के साथ बॉलीवुड की फिल्में देखना पसंद करूंगी। मुझे किसी बौद्धिक फिल्म देखने से ज्यादा मजा आनंद हिंदी फिल्मों के गाने गुनगुनाने में आएगा। उसके जवाब से मेरा दिल खुश हो गया, मैंने महसूस किया कि भूमंडलीकरण के इस दौर में बॉलीवुड की फिल्मों की अपील बढ रही है। हिंदी सिनेमा का आकर्षण बढ रहा है। कल्पना की उडान हिंदी फिल्में देख चुके पश्चिम के अधिकतर दर्शकों को बॉलीवुड की फिल्में नाटकीय और अनगढ लगती हैं। इसकी वजह यही हो सकती है कि हमारी ज्यादातर फिल्में तीन घंटे की होती हैं, हीरो-हीरोइन मौका मिलते ही नाचने-गाने लगते हैं। हमारी फिल्मों की कहानियां कल्पना की ऊंची उडान से निकलती हैं। उनमें ढेर सार...