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फिल्‍म समीक्षा : घनचक्‍कर

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  -अजय ब्रह्मात्मज                      जब भी कोई निर्देशक अपनी बनाई लीक से ही अलग चलने की कोशिश में नई विधा की राह चुनता है तो हम पहले से ही सवाल करने लगते हैं-क्या जरूरत थी? हमारी आदत है न तो हम खुद देखी हुई राह छोड़ते हैं और न अपने प्रिय फिल्मकारों की सोच, शैली और विषय में कोई परिव‌र्त्तन चाहते हैं। राजकुमार गुप्ता की 'घनचक्कर' ऐसी ही शंकाओं से घिरी है। उन्होंने साहसी कदम उठाया है और अपने दो पुराने मौलिक प्रयासों की तरह इस बार भी सफल कोशिश की है? कॉमेडी का मतलब हमने बेमतलब की हंसी या फिर स्थितियों में फंसी कहानी ही समझ रखा है। 'घनचक्कर' 21वीं सदी की न्यू एज कामेडी है। किरदार, स्थितियों, निर्वाह और निरूपण में परंपरा से अलग और समकालीन 'घनचक्कर' से राजकुमार गुप्ता ने दर्शाया है कि हिंदी सिनेमा नए विस्तार की ओर अग्रसर है।                         सामान्य सी ...

फिल्‍म समीक्षा : नो वन किल्‍ड जेसिका

-अजय ब्रह्मात्‍मज परिचित घटनाक्रम पर फिल्म बनाना अलग किस्म की चुनौती है। राजकुमार गुप्ता की पहली फिल्म आमिर सच्ची घटनाओं पर काल्पनिक फिल्म थी। नो वन किल्ड जेसिका सच्ची घटनाओं पर वास्तविक फिल्म है, लेकिन यह डाक्यूमेंट्री नहीं है और न ही यह बॉयोपिक की तरह बनायी गयी है। कानूनी अड़चनों से बचने के लिए निर्देशकों ने जेसिका और रूबीना के अलावा बाकी किरदारों के नाम बदल दिए हैं। इस परिवर्तन से प्रभाव में थोड़ा फर्क पड़ा है, जिसे पाटने की राजकुमार गुप्ता ने सार्थक कोशिश की है। जेसिका लाल की हत्या और उसके बाद के घटनाक्रमों से हम सभी वाकिफ हैं। कोर्ट-कचहरी, पॉलिटिक्स और मीडिया की बदलती भूमिकाओं और प्रभाव को इस मामले के जरिए देश ने करीब से समझा। राजकुमार गुप्ता ने जेसिका से संबंधित सामाजिक पाठ को एक कैप्सूल के रूप में रख दिया है। उन्होंने इसे अतिनाटकीय नहीं होने दिया है। फिल्म नारेबाजी या विजय अभियान जैसी मुहिम में भी शामिल नहीं होती। वास्तव में यह मुख्य घटनाक्रम में पहले एकाकी पड़ती सबरीना और उसे संघर्ष से एकाकार होती मीरा की कहानी है। मीरा निश्चित ही फिल्म में एक किरदार है, लेकिन वह...