फिल्म समीक्षा : तमाशा
-अजय ब्रह्मात्मज प्रेम और जिंदगी की नई तकरीर इम्तियाज अली ने रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण जैसे दो समर्थ कलाकारों के सहारे प्रेम और अस्मिता के मूर्त-अमूर्त भाव को अभिव्यक्ति दी है। सीधी-सपाट कहानी और फिल्मों के इस दौर में उन्होंने जोखिम भरा काम किया है। उन्होंने दो पॉपुलर कलाकारों के जरिए एक अपारंपरिक पटकथा और असामान्य चरित्रों को पेश किया है। हिंदी फिल्मों का आम दर्शक ऐसी फिल्मों में असहज हो जाता है। फिल्म देखने के सालों के मनोरंजक अनुभव और रसास्वादन की एकरसता में जब भी फेरबदल होती है तो दर्शक विचलित होते हैं। जिंदगी रुटीन पर चलती रहे और रुटीन फिल्मों से रुटीन मनोरंजन मिलता रहे। आम दर्शक यही चाहते हैं। इम्तियाज अली इस बार अपनी लकीर बदल दी है। उन्होंने चेहरे पर नकाब चढ़ाए अदृश्य मंजिलों की ओर भागते नौजवानों को लंघी मार दी है। उन्हें यह सोचने पर विवश किया है कि क्यों हम सभी खुद पर गिरह लगा कर स्वयं को भूल बैठे हैं ? वेद और तारा वर्तमान पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। परिवार और समाज ने उन्हें एक राह दिखाई है। उस राह पर चलने में ही उन...