दरअसल : युवा निर्देशक का आत्मदंश
-अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते एक युवा निर्देशक से मुलाकात हुई। देसी तेवर के साथ आए इस निर्देशक की पहली फिल्म की दस्तक सभी ने सुनी थी। अपने शहर की राजनीति और दुविधाओं को उन्होंने फिल्म का रूप दिया था। फिल्म सराही गई थी। अनेक युवा अभिनेताओं को उस फिल्म से पहचान मिली थी। बाद में उस निर्देशक ने लोकप्रिय सितारों और घरानों के बच्चों के साथ फिल्में बनाईं। वे सब आधी-अधूरी ही रहीं। न फिल्में रिलीज हुई और न उनकी पहचान गाढ़ी हुई। फिल्में बनें और पूरी न हों यो पूरी होकर रिलीज न हों तो निर्देशक के बारे में सीधे या दबी जबान से सभी यही कहते हैं, ‘कुछ तो प्राब्लम है? कौन रिस्क ले।’ यह वक्त होता है अपनी इच्छाशक्ति बनाए रखने का। जब चारों तरफ से हौसले पस्त करने की साजिशें चल रही हों तो सुबह के इंतजार में अंधेरी रात से गुजरना पड़ता है। निर्देशक ने हिम्मत नहीं हारी। वे छोटे-मोटे प्रयास करते रहे। उन्होंने एक पुरानी चर्चित फिल्म को हल्का सा ट््िवस्ट दिया। नए अंदाज में पेश किया। वह फिल्म चली और खूब चली। इतनी चली कि उनका दफ्तर गुलजार हो गया। स्ट्रगलर और स्टार का तांता लग...