Posts

Showing posts with the label यश चोपडा

दिग्ग्ज फिल्मकार है खामोश

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछली सदी के आखिरी दशक तक सक्रिय फिल्मकार अचानक निष्क्रिय और खामोश दिखाई पड़ रहे हैं। सच कहें तो उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वे किस प्रकार की फिल्में बनाएं? उनका सिनेमा पुराना पड़ चुका है और नए सिनेमा को वे समझ नहीं पा रहे हैं। परिणाम यह हुआ किअसमंजस की वजह से उनके प्रोडक्शन हाउस में कोई हलचल नहीं है। सन् 2001 के बाद हिंदी सिनेमा बिल्कुल नए तरीके से विकसित हो रहा है। कहा जा सकता है कि सिनेमा बदल रहा है। हर पांच-दस साल पर जीवन के दूसरे क्षेत्रों की तरह सिनेमा में भी बदलाव आता है। इस बदलाव के साथ आगे बढ़े फिल्मकार ही सरवाइव कर पाते हैं, क्योंकि दर्शकों की रुचि बदलने से नए मिजाज की फिल्में ही बॉक्स ऑफिस पर बिजनेस कर पाती हैं। हाल-फिलहाल की कामयाब फिल्मों पर नजर डालें तो उनमें से कोई भी पुराने निर्देशकों की फिल्म नहीं है। यश चोपड़ा, सुभाष घई, जेपी दत्ता जैसे दर्जनों दिग्गज अब सिर्फ समारोहों की शोभा बढ़ाते मिलते हैं। इनमें से कुछ ने अपनी कंपनियों की बागडोर युवा वारिसों के हाथ में दे दी है या फिर गैरफिल्मी परिवारों से आए युवकों ने कमान संभाल ली है। अब वे तय कर रहे हैं कि ...

क्या अपनी फिल्में देखते हैं यश चोपड़ा?

Image
-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म टशन की रिलीज और बॉक्स ऑफिस पर उसके बुरे हश्र के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या यश चोपड़ा अपनी फिल्में देखते हैं? चूंकि वे स्वयं प्रतिष्ठित निर्देशक हैं और धूल का फूल से लेकर वीर जारा तक उन्होंने विभिन्न किस्म की सफल फिल्में दर्शकों को दी हैं, इसलिए माना जाता है कि वे भारतीय दर्शकों की रुचि अच्छी तरह समझते हैं। फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि यशराज फिल्म्स की पांच फिल्मों में से चार औसत से नीचे और सिर्फ एक औसत या औसत से बेहतर फिल्म हो पा रही है। ऐसा तो नहीं हो सकता कि रिलीज के पहले ये फिल्में उनकी नजरों से नहीं गुजरी हों! क्या यश चोपड़ा की सहमति से इतनी बेकार फिल्में बन रही हैं? नील एन निक्की, झूम बराबर झूम जैसी फिल्मों को देखकर कोई भी अनुभवी निर्देशक उनका भविष्य बता सकता है? खास कर यश चोपड़ा जैसे निर्देशक के लिए तो यह सामान्य बात है, क्योंकि पिछले 60 सालों में उन्होंने दर्शकों की बदलती रुचि के अनुकूल कामयाब फिल्में दी हैं। वीर जारा उनकी कमजोर फिल्म मानी जाती है, लेकिन टशन और झूम बराबर झूम के साथ उसे देखें, तो कहना पड़ेगा कि वह क्लासिक है। दिल तो पागल है के समय यश चोपड...