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Showing posts with the label मोहम्‍मद जीशान अयूब

फिल्‍म समीक्षा : समीर

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फिल्‍म समीक्षा समीर -अजय ब्रह्मात्‍मज दक्षिण छारा ने आतंकवाद और अहमदाबाद की पृष्‍ठभूमि पर ‘ समीर ’ का लेखन और निर्देशन किया है। यह फिल्‍म एक प्रासंगिक विषय को अलग नजरिए से उठाती है। सत्‍ता,राजनीति और आतंकवाद के तार कहां मिले होत हैं ? आम नागरिक इनसे अनजान रहता है। वह अपनी गली और मोहल्‍लों में चल रही हवा से तय करता है कि बाहर का तापमान क्‍या हो सकता है ? उसे नहीं मालूम रहता कि यह हवा और तापमान भी कोई या कुछ लोग नियंत्रित करते हैं। हम कभी उन्‍हें पुलिस तो कभी राजनेता और कभी भटके नौजवानों के रूप में देखते हैं। दक्षिण छारा ने पुलिस,प्रशासन,नेता और आतंकवाद की इसी मिलीभगत को नए पहलुओं से उकेरने की कोशिश की है। हमें निर्दोष दिख रहे किरदार साजिश में शामिल दिखते हैं। हक के लिए लिख रही रिपोर्टर अचानक सौदा कर लेती है। ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभा रहा पुलिस अधिकारी खुद को मोहरे के रूप में देखता है। बिल्‍कुल आज के समाज की तरह फिल्‍म में सब कुड गड्डमड्ड है। फिल्‍म संकेत देती है कि सत्‍ताधारी राजनीतिक पार्टी अपना वर्चस्‍व और गद्दी बचाए रखने के लिए प्रशासन और पुलिस के साथ मिलकर कोई ...

फिल्‍म समीक्षा : रांझणा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अगर आप छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में नहीं रहे हैं तो 'रांझणा' का कुंदन बेवकूफ और बच्चा लगेगा। उसके प्रेम से आप अभिभूत नहीं होंगे। 21वीं सदी में ऐसे प्रेमी की कल्पना आनंद राय ही कर सकते थे। उसके लिए उन्होंने बनारस शहर चुना। मुंबई और दिल्ली के गली-कूचों में भी ऐसे प्रेमी मिल सकते हैं, लेकिन वे ऊिलहाल सिनेमा की नजर के बाहर हैं। बनारस को अलग-अलग रंग-ढंग में फिल्मकार दिखाते रहे हैं। 'रांझणा' का बनारस अपनी बेफिक्री, मस्ती और जोश के साथ मौजूद है। कुंदन, जोया, बिंदिया, मुरारी, कुंदन के माता-पिता, जोया के माता-पिता और बाकी बनारस भी गलियों, मंदिरों, घाट और गंगा के साथ फिल्म में प्रवहमान है। 'रांझणा' के चरित्र और प्रसंग के बनारस के मंद जीवन की गतिमान अंतर्धारा को उसकी चपलता के साथ चित्रित करते हैं। सिनेमा में शहर को किरदार के तौर पर समझने और देखने में रुचि रखने वाले दर्शकों के लिए 'रांझणा' एक पाठ है। फिल्म में आई बनारस की झलक सम्मोहक है। 'रांझणा' कुंदन और जोया की अनोखी असमाप्त प्रेम कहानी है। बचपन में ही कुंदन की द...