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फिल्‍म समीक्षा : जय गंगाजल

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देसी मिजाज और भाषा -अजय ब्रह्मात्‍मज हिदी सिनेमा के फिल्‍मकार अभी ऐसी चुनौतियों के दौर में फिल्‍में बना रहे हैं कि उन्‍हें अब काल्‍पनिक कहानियों में भी शहरों और किरदारों के नामों की कल्‍पना करनी पड़ेगी। यह सावधानी बरतनी होगी कि निगेटिव छवि के किरदार और शहरों के नाम किसी वास्‍तविक नाम से ना मिलते हों। ‘ जय गंगाजल ’ में बांकीपुर को लेकर विवाद रहा कि इस नाम का बिहार में विधान सभा क्षेत्र है। चूंकि फिल्‍म के विधायक बांकीपुर के हैं,इसलिए दर्शकों में संदेश जाएगा कि वहां के वर्त्‍तमान विधायक भी भ्रष्‍ट हैं। कल को फिल्‍म के किरदार भोलानाथ सिंह यानी बीएन सिंह नाम का कोई पुलिस अधिकारी भी आपत्ति जता सकता है कि इस फिल्‍म से मेरी बदनामी होगी। भविष्‍य अब खल और निगेटिव किरदारों के नाम दूधिया कुमार और बर्तन सिंह होंगे। शहरों के नाम भागलगढ़ और पतलूनपुर होंगे। ताकि कोई विवाद न हो। बहरहाल,प्रकाश झा की ‘ जय गंगाजल ’ मघ्‍य प्रांत के एक क्षेत्र की कहानी है,जहां आईपीएस अधिकारी आभा माथुर की नियुक्ति होती है। मुख्‍यमंत्री की पसंद से उन्‍हें वहां भेजा जाता है। आभा माथुर को मालूम है कि उनके क...

फिल्‍म समीक्षा : सिटीलाइट्स

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दुख मांजता है  -अजय ब्रह्मात्‍मज  माइग्रेशन (प्रव्रजन) इस देश की बड़ी समस्या है। सम्यक विकास न होने से आजीविका की तलाश में गावों, कस्बों और शहरों से रोजाना लाखों नागरिक अपेक्षाकृत बड़े शहरों का रुख करते हैं। अपने सपनों को लिए वहां की जिंदगी में मर-खप जाते हैं। हिंदी फिल्मों में 'दो बीघा जमीन' से लेकर 'गमन' तक हम ऐसे किरदारों को देखते-सुनते रहे हैं। महानगरों का कड़वा सत्य है कि यहां मंजिलें हमेशा आंखों से ओझल हो जाती हैं। संघर्ष असमाप्त रहता है। हंसल मेहता की 'सिटीलाइट्स' में कर्ज से लदा दीपक राजस्थान के एक कस्बे से पत्नी राखी और बेटी माही के साथ मुंबई आता है। मुंबई से एक दोस्त ने उसे भरोसा दिया है। मुंबई आने पर दोस्त नदारद मिलता है। पहले ही दिन स्थानीय लोग उसे ठगते हैं। विवश और बेसहारा दीपक को हमदर्द भी मिलते हैं। यकीनन महानगर के कोनों-अंतरों में भी दिल धड़कते हैं। दीपक को नौकरी मिल जाती है। एक दोस्त के बहकावे में आकर दीपक साजिश का हिस्सा बनता है, लेकिन क्या यह साजिश उसके सपनों को साकार कर सकेगी? क्या वह अपने परिवार के साथ सुरक्षित जिंदगी जी...