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फिल्‍म समीक्षा : मसान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज          बनारस इन दिनों चर्चा में है। हिंदी फिल्मों में आरंभ से ही बनारस की छवियां भिन्न रूपों में दिखती रही हैं। बनारस का आध्यात्मिक रहस्य पूरी दुनिया को आकर्षित करता रहा है। बनारस की हवा में घुली मौज-मस्ती के किस्से यहां की गलियों और गालियों की तरह नॉस्टैलजिक असर करती हैं। बनारस की चर्चा में कहीं न कहीं शहर से अनजान प्रेमी उसकी जड़ता पर जोर देते हैं। उनके विवरण से लगता है कि बनारस विकास के इस ग्लोबल दौर में ठिठका खड़ा है। यहां के लोग अभी तक ‘रांड सांढ सीढी संन्यासी, इनसे बचो तो सेवो कासी’ की लोकोक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि बनारस भी समय के साथ चल रहा है। देश के वर्त्तमान प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है बनारस। हर अर्थ में आधुनिक और समकालीन। प्राचीनता और आध्यात्मिकता इसकी रगों में है।             नीरज घेवन की ‘मसान’ इन धारणाओं को फिल्म के पहले फ्रेम में तोड़ देती है। इस फिल्मा के जरिए हम देवी, दीपक, पाठक, शालू, रामधारी और झोंटा से परिचित होते हैं। जिंदगी की कगार पर चल र...

मन कस्‍तूरी रे - वरुण ग्रोवर

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बनारस की पृष्‍ठभूमि पर वरुण ग्रोवर का यह गीत कबीर की जमीन पर सारगर्भित तरीके से 'मसान' की थीम की अभिव्‍यक्ति है। पहली बार इसे सुनने के बाद ही मुझे वरुण के प्रयास और अभ्‍यास ने प्रभावित किया था। चंद शब्‍दों में भावों की यह उलटबांसी प्रशेसनीय है। हिंदी फिल्‍मों के गीतों की परंपरा में पंडित इसे जहां स्‍थान दे,फिलहाल यह हमारे समय की मुखर और भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति है। इसे संगीत से इंडियन ओसन ने सजाया है। धन्‍यवाद वरुण... अल्‍लाह काे न मानते हुए भी मुहावरे में कहें तो 'अल्‍लाह करे ज़ोर-ए-क़लम और ज्‍यादा.....'  मुखड़ा  पाट ना पाया मीठा पानी  ओर-छोर की दूरी रे  मन कस्तूरी।  Even the purest of things, river water, Couldn't bridge the gap of this side and that side. मन कस्तूरी  रे  जग दस्तूरी  रे बात हुयी ना पूरी रे  मन कस्तूरी  रे ।  Heart is like  kasturi ,  in this ritualistic world And it doesn't get a closure ever.  खोजे अपनी गंध ना पावे  चादर का पैबंद ना पावे  Searc...

कान में मसान को मिले दो पुरस्‍कार

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-अजय ब्रहमत्‍मज पिछले रविवार को समाप्‍त हुए कान फिल्‍म समारोह में भारत से ‘ अन सर्टेन रिगार्ड ’ खंड में गई नीरज घेवन की ‘ मसान ’ को दो पुरस्‍कार मिले। नीरज को संभावनाशील निर्देशक का पुरस्‍कार मिला और फिल्‍म को समीक्षको के इंटरनेशनल संगठन फिपरेसी का पुरस्‍कार मिला। परंपरा और आधुनिकता के साथ बाकी स्थितियों की वजह से अपनी-अपनी जिंदगियों के चौमुहाने पर खड़े दीपक,देवी,पाठक,झोंटा और अन्‍य किरदारों की कहानी है ‘ मसान ’ । इसे नीरज घेवन ने निर्देशित किया है। भारत और फ्रांस के निर्माताओं के सहयोग से बनी इस फिल्‍म की पूरी शुटिं बनारस शहर और उसके घाटों पर हुई है। मराठी मूल के नीरज घेवन परवरिश और पढ़ाई-लिखाई हैदराबाद और पुणे में हुई। नीरज खुद को यूपीवाला ही मानते हैं। बनारस और उत्‍तर भारत की भाषा,संस्‍कृति और बाकी चीजों में उनकी रुचि और जिज्ञासा बनी रही। उन्‍होंने बनारस के बैकड्राप पर एक कहानी सोच और लिख रखी थी। वे अच्‍छी-खासी नौकरी कर रहे थे और उनकी शादी की भी बात चल रही थी,लेकिन तभी फिल्‍मों में उनकी रुचि बढ़ी। वे अनुराग कश्‍यप के संपर्क में आए। अनुराग के साथ वे ‘ गैंग्‍स ऑफ व...

कान में भारत का डंका : नीरज घेवन की मसान

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-अजय ब्रह्मात्मज     नीरज घेवन की फिल्म ‘मसान’ इस साल कान फिल्म फेस्टिवल के अनसर्टेन रिगार्ड खंड में प्रदर्शित होगी। 2010 में विक्रमादित्य मोटवाणी की फिल्म ‘उड़ान’ भी इसी खंड के लिए चुनी गई थी। कान फिल्म फेस्टिवल में सुंदरियों की परेड की तस्वीरें तो हम विस्तार से छपते और देखते हैं, लेकिन युवा फिल्मकारों की उपलब्धियों पर हमारा ध्यान नहीं जाता। नीरज घेवन की फिल्म ‘मसान’ की पृष्ठभूमि बनारस की है। यह श्मशान के इर्द-गिर्द चल रहे कुछ किरदारों की तीन कहानियों का संगम है।     नीरज घेवन खुद को ‘दिल से भैया’ कहते हैं। उनका दिल बनारस में लगता है। मराठी मां-बाप की संतान नीरज का जन्म हैदराबाद में हुआ। वहीं आरंभिक पढ़ाई-लिखाई हुई। पारिवारिक और सामाजिक दवाब में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। फिर एमबीए किया और फिर मोटी पगार की एक नौकरी भी कर ली। कॉलेज के दिनों में एफटीआईआई से आए एक समर नखाटे के लिए फिल्म संबंधी एक लेक्चर का ऐसा असर रह गया कि सालों बाद वह सिनेमा में रुचि के अंकुर की तरह फूटा। फिल्मों के मशहूर ब्लॉग ‘पैशन फॉर सिनेमा’ से परिचय हुआ। सिनेमा की रुचि शब्दो...