बिट्टू के बंधन
-अजय ब्रह्मात्मज राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'दिल्ली 6' में सपनों के पीछे भाग रही बिट्टू बहकावे में आकर घर छोड़ देती है। संयोग से रोशन उसे बचा लेता है। अगर बिट्टू चांदनी चौक के फोटोग्राफर के साथ भाग गयी होती हो कहानी कुछ और हो जाती। हम आए दिन ऐसी बिट्टुओं के किस्से पढ़ते रहते हैं। उजाले की तलाश में वर्तमान जिंदगी के अंधेरे से निकलते समय सही दिशा-निर्देश के अभाव में गांव, कस्बे, छोटे शहरों और महानगरों की बिट्टुएं अंतहीन सुरंगों में प्रवेश कर जाती हैं। उनके अपने छूट जाते हैं और सपने पूरे नहीं होते। घर-समाज में हमारे आस पास ऐसी बिट्टुओं की भरमार है। अगर समाज उन्हें बंधनों से मुक्त करे, उन्हें आजादी दे, उन्हें साधिकार निर्भीक ढंग से घूमने-फिरने और अपना कॅरियर चुनने की स्वतंत्रता दे, तो अपना देश विकास की राह पर छलांगें लगाता हुआ काफी आगे बढ़ सकता है। शर्म की बात है कि आजादी के साठ सालों के बाद भी देश की बिट्टुएं बंधन में हैं। शिक्षा और कथित स्वतंत्रता के बावजूद वे दिन-रात सहमी सी रहती हैं। बगैर बीमारी के उनकी सांसें घुटती रहती हैं। उत्तर भारत के किसी भी शहर के मध्यवर्गीय परिवार का...