फिल्म समीक्षा : बबल गम
छोटे शहर की किशोर कहानी -अजय ब्रह्मात्मज कहानी थोड़ी पुरानी है। उस दौर की है, जब इंटरनेट और मोबाइल नहीं आया था। छोटे शहरों केकिशोर-किशोरियों के बीच तब भी दोस्ती होती थी। उनके बीच मासूम प्रेम पलता था और लड़ाई-झगड़े भी होते थे। संजीवन लाल ने उस दौर को चंद किशोरों के माध्यम से चित्रित किया है। बबल गम किशोरों के जीवन में झांकने के साथ पैरेंटिंग के पहलू को भी टच करती है। वेदांत और रतन के बीच ईष्र्या और प्रतियोगिता है कि दोनों में से कौन जेनी को पहले अपनी दोस्त बना लेता है। वेदांत की कोशिशों में मूक और वधिर बड़े भाई विदुर के आने से खलल पड़ती है। मां-बाप चाहते हैं कि वेदांत छुट्टी पर आए अपने भाई विदुर का खयाल रखे। मां-बाप विदुर का अतिरिक्त खयाल रखने की प्रक्रिया में अनजाने ही वेदांत को नाराज कर देते हैं। उसे गलतफहमी होती है कि पूरे परिवार के केंद्र में विदुर है। वह विरोध और प्रतिक्रिया में गलत राह पकड़ लेता है। उड़ान की तरह जमशेदपुर की पृष्ठभूमि में बनी बबल गम विषयगत विस्तार के कारण धारदार असर नहीं छोड़ पाती। एक साथ कई पहलुओं को लेकर चलने के कारण फिल्म का प्रभाव बिखर गया है। इसी कारण ईमानदार...