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फिल्‍म समीक्षा : फोबिया

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डर का रोमांच -अजय ब्रह्मात्‍मज अवधि-113 मिनट स्‍टार- तीन स्‍टार   डर कहां रहता है ? दिमाग में,आंखों में या साउंड में ? फिल्‍मों में यह साउंड के जरिए ही जाहिर होता है। बाकी इमोशन के लिए भी फिल्‍मकार साउंड का इस्‍तेमाल करते हैं। कोई भी नई फिल्‍म या अनदेखी फिल्‍म आप म्‍यूट कर के दखें तो आप पाएंगे कि किरदारों की मनोदशा को आप ढंग से समझ ही नहीं पाए। हॉरर फिल्‍मों में संगीत की खास भूमिका होती है। पवन कृपलानी ने ‘ फोबिया ’ में संगीत का सटीक इस्‍तेमाल किया है। हालांकि उन्‍हें राधिका आप्‍टे जैसी समर्थ अभिनेत्री का सहयोग मिला है,लेकिन उनकी तकनीकी टीम को भी उचित श्रेय मिलना चाहिए। म्‍यूजिक डायरेक्‍टर डेनियल बी जार्ज,एडिटर पूजा लाढा सूरती और सिनेमैटोग्राफर जयकृष्‍ण गुम्‍मडी के सहयोग से पवन कृपलानी ने रोमांचक तरीके से डर की यह कहानी रची है। महक पेंटर है। वह अपनी दुनिया में खुश है। एक रात एग्‍जीबिशन से लौटते समय टैक्‍सी ड्रायवर उसे अकेला और थका पाकर नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करता है। वह उस हादसे को भूल नहीं पाती और एक मनोरोग का शिकार हो जाती है। बहन अनु और दो...

मनोरोग के इलाज में शर्म कैसी - राधिका आप्‍टे

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- स्मिता श्रीवास्‍तव राधिका आप्टे सधे व सटीक कदम बढ़ा रही हैं। वह शॉर्ट फिल्म , थिएटर , वेब सीरीज और फिल्मों में संतुलन बना कर चल रही हैं। साउथ में भी सक्रिय हैं। हाल में उन्होंने रजनीकांत के साथ तमिल फिल्म की शूटिंग पूरी की है। 29 मई को उनकी फिल्म ‘ फोबिया ’ रिलीज हो रही। यह एग्रोफोबिया पर आधारित है। इस बीमारी से पीडि़त शख्स को अपने आसपास के माहौल से जुड़ी किसी भी सामाजिक स्थिति का सामना करने में घबराहट होती है। भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से डरता है। वैसे लोगों को हमेशा डर सताता रहता है कि घर से बाहर निकलते ही बाहर की दुनिया उसे खत्म कर देगी। फिल्म के निर्देशक ‘ रागिनी एमएमएस ’ व ‘ डर: एट द मॉल ’ बना चुके पवन कृपलानी हैं।         राधिका कहती हैं ,‘ फोबिया एक लडक़ी महक की कहानी है। वह पेंटर है। मुंबई में अकेले रहती है। आत्मनिर्भर है। बहुत आत्मविश्वासी हैं। उसके साथ एक हादसा हो जाता है। उसकी वजह से वह एग्रोफोबिया से पीडि़त हो जाती है। हमारे देश में लोग इस बीमारी से ज्यादा वाकिफ नहीं हैं। अगर किसी को पैनिक अटैक आ जाए तो उसे पागल समझने लगते...