फिल्म समीक्षा :फूँक 2
-अजय ब्रह्मात्मज दावा था कि फूंक से ज्यादा खौफनाक होगी फूंक-2, लेकिन इस फिल्म के खौफनाक दृश्यों में हंसी आती रही। खासकर हर डरावने दृश्य की तैयारी में साउंड इफेक्ट के चरम पर पहुंचने के बाद सिहरन के बजाए गुदगुदी लगती है। कह सकते हैं कि राम गोपाल वर्मा से दोहरी चूक हो गई है। पहली चूक तो सिक्वल लाने की है और दूसरी चूक खौफ पैदा न कर पाने की है। इस फिल्म के बारे में रामू कहते रहे हैं कि मिलिंद का आइडिया उन्हें इतना जोरदार लगा कि उन्होंने निर्देशन की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंप दी। अफसोस की बात है कि मिलिंद अपने आइडिया को पर्दे पर नहीं उतार पाए। रामू ने भी गौर नहीं किया कि फूंक-2 हॉरर फिल्म है या हॉरर के नाम पर कामेडी। किसी ने सही कहा कि जैसी कामेडी फिल्म में लाफ्टर ट्रैक चलता है, पाश्र्र्व से हंसी सुनाई पड़ती रहती है और हम भी हंसने लगते हैं। वैसे ही अब हॉरर फिल्मों में हॉरर ट्रैक चलना चाहिए। साथ में चीख-चित्कार हो तो शायद डर भी लगने लगे। फूंक-2 में खौफ नहीं है। आत्मा और मनुष्य केबीच का कोई संघर्ष नहीं है, इसलिए रोमांच नहीं होता। फिल्म में कुछ हत्याएं होती हैं, लेकिन उन हत्याओं से भी डर...