बदल रहा है फिल्मों का प्रदर्शन और बिजनेस
-अजय ब्रह्मात्मज यह संभव है कि मैं निकट भविष्य में शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्म को थिएटर के बजाए अपने होम थिएटर में देखूं? अभी यह बात असंभव सी लगती है। शहरों के रईस और सेलिब्रिटी थिएटर की भीड़ से बचते हुए अपने घरों, बंगलों और होम थिएटर में इसका आनंद उठाने लगे हैं। डिजिटल तकनीक के जरिए उन्हें अपने घरों में यह सुविधा मिल रही है। यूएफओ समेत अनेक कंपनियां ये सुविधाएं दूर-दराज के थिएटरों और महानगरों के घरों में पहुंचा रही हैं। अभी यह थोड़ा महंगा है, लेकिन आले वाले समय में डीटीएच और डिश के जरिए आम दर्शकों को भी उनके बजट में घर बैठे मनोरंजन मिलने लगेगा। अभी डिश के जरिए एक-दो हफ्तों के बाद नई फिल्में हम देख पाते हैं। कुछ सालों में यह रिलीज के दिन ही डिश के जरिए हर घर के टीवी पर मिलेगा। 50 रुपए में टीवी के छोटे पर्दे पर सिनेमा उपलब्ध होगा। इतना ही नहीं मोबाइल टैबलेट, आई पैड और पॉड समेत अन्य माध्यमों से यह हमारी हथेली में भी आ सकता है और बिजनेस कर सकता है। फिल्मों के देखने के तरीके से फिल्मों का बिजनेस बदल रहा है। पहले फिल्मों की सारी कमाई थिएटर रिलीज के कलेक्शन से आती और आ...