दरअसल : फिल्म इंडस्ट्री के फरजी
-अजय ब्रह्मात्मज बहुत पहले रहीम ने लिखा था ¸ ¸ ¸ जो रहीम ओछो बढ़ै,तो अति ही इतराय। प्यादा से फरजी भयो,टेढ़ो टेढ़ो जाय।। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आए दिन कोई न कोई प्यादा से फरजी होता है और उसकी चाल बदल जाती है। हर शुक्रवार के साथ जहां कलाकारों,निर्देशकों और निर्माताओं की पोजीशन बदलती है,वहां बदलाव ही नियमित प्रक्रिया है। रोजाना हजारों महात्वाकांक्षी हिंदी फिल्मों में अपनी मेहनत से जगह बनाने मुंबई पहुंचते हैं। उनमें से कुछ की ही मेहनत रंग लाती है। धर्मभीरू और भाग्यवादी समाज में सफलता के विश्लेषण के बजाए सभी उसे किस्मत से जोड़ देते हैं। अजीब सी बात है कि सफल और कामयाब भी आनी कामयाबी को नसीब और किस्मत का नतीजा मानते हैं। सच्चाई यह है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लगनशील और मेहनती ही सफल होते हैं। प्रतिभा हो तो सहूलियत होती है। रास्ते सुगम होते हैं। किस्मत और संयोग तो महज कहने की बातें हैं। फिल्म इंडस्ट्री में कहा और माना जाता है कि यहां धैर्य के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ता व्यक्ति अवश्य सफल होता है। शायद ही किसी को एकबारगी कामयाबी नहीं मिलती। पिछ...