दरअसल:फूहड़ कामयाबी,अश्लील जश्न
-अजय ब्रह्मात्मज मीडिया की भूख और निर्माताओं के स्वार्थ से फिल्मों की कामयाबी का जश्न जोर पकड़ रहा है। फिल्म रिलीज होने के दो हफ्तों के अंदर ऐसे जश्न का आयोजन किया जाता है। सूचना दी जाती है कि सिलेक्ट मीडिया को निमंत्रण भेजा जा रहा है। आप जश्न की जगह पहुंचेंगे, तो सड़क पर लगे ओबी वैन और अंदर कैमरों की भीड़ बता देती है कि ऐरू-गैरू, नत्थू-खैरू सभी आए हैं। हां, स्टारों से बात करने का व्यक्तिगत मौका सिलेक्ट मीडिया को दिया जाता है। बाद में सभी ग्रुप में खड़े कर दिए जाते हैं। स्टारों की इस कृपा से भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मजबूर पत्रकार अभिभूत और संतुष्ट नजर आते हैं। वे इस सामूहिक इंटरव्यू को संपादन कला से एक्सक्लूसिव बनाकर प्रसारित कर देते हैं। दो दिनों के अंदर मुंबई के सभी अखबारों में जश्न में आए मेहमानों और फिल्म के स्टारों की तस्वीरें छप जाती हैं। जश्न का मकसद पूरा हो जाता है। कामयाबी ठोस हो और जश्न असली हो, तो सचमुच आनंद आता है। औरों की खुशी में शरीक होने में भी एक उत्साह रहता है। पहले जश्न के ऐसे अवसरों पर मेहमानों का खास खयाल रखा जाता था। फिल्म के स्टार और निर्माता-निर्देशक संबंधित फ...