फ़िल्म समीक्षा:किडनैप
चूक गए संजय गढवी -अजय ब्रह्मात्मज संजय गढवी को इस फिल्म का नाम सबक रखना चाहिए था। उनकी पुरानी फिल्मों धूम और धूम 2 की तरह किडनैप का मुख्य किरदार भी निगेटिव है। इस फिल्म में पिछली दोनों फिल्मों का जादू नहीं है। कहीं वह जादू किसी और का तो नहीं था? इस फिल्म को लेकर बनी उत्सुकता चंद दृश्यों के बाद ठंडी हो जाती है और कई बार एकरसता का भी एहसास होता है। अमीर विक्रांत रैना अपने प्रभाव, जिद और अहंकार में एक अनाथ बच्चे को अपराधी ठहरा कर जेल की हवा खिला देता है। वह बच्चा अपनी गलती के लिए सारी भी नहीं बोल पाता। बाद में वही बच्चा विक्रांत रैना का अहंकार तोड़ता है और उन्हें यह सबक देता है कि जल्दबाजी में लिया गया उनका फैसला गलत था। इसके लिए वह उनकी बेटी सोनिया का इस्तेमाल करता है। वह उसे किडनैप कर लेता है। विक्रांत रैना को बेटी तक पहुंचने के लिए अपराध तक करने पड़ते हैं। फिल्म के आखिर में पूछे गए कबीर के सवाल विक्रांत रैना को झिंझोड़ देते हैं। फिल्म का विषय रोचक है लेकिन उसका विस्तार और निर्वाह नहीं हो सका। चूंकि घटनाएं एक ही जगह पर होती हैं इसलिए लेखकीय कल्पना और निर्देशक के दृश्य विधान की सीमाएं व ...