फिल्म समीक्षा : खूबसूरत
-अजय ब्रह्मात्मज शशांक घोष की 'खूबसूरत' की तुलना अगर हृषिकेष मुखर्जी की 'खूबसूरत' से करने के इरादे से सोनम कपूर की यह फिल्म देखेंगे तो निराशा और असंतुष्टि होगी। यह फिल्म पुरानी फिल्म के मूल तत्व को लेकर नए सिरे से कथा रचती है। एक अनुशासित और कठोर माहौल के परिवार में चुलबुली लड़की आती है और वह अपने उन्मुक्त नैसर्गिक गुणों से व्यवस्था बदल देती है। निर्देशक शशांक घोष और उनके लेखक ने मूल फिल्म के समकक्ष पहुंचने की भूल नहीं की है। उन्होंने नए परिवेश में नए किरदारों को रखा है। 'खूबसूरत' सामंती व्यवहार और आधुनिक सोच-समझ के द्वंद्व को रोचक तरीके से पर्दे पर ले आती है। एक हादसे से राजसी परिवार में पसरी उदासी इतनी भारी है कि सभी मुस्कराना भूल गए हैं। वे जी तो रहे हैं, लेकिन सब कुछ नियमों और औपचारिकता में बंधा है। परिवार के मुखिया घुटनों की बीमारी से खड़े होने और चलने में समर्थ नहीं हैं। उनकी देखभाल और उपचार के लिए फिजियोथिरैपिस्ट मिली चक्रवर्ती का आना होता है। दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार में पंजाबी मां और बंगाली पिता की बेटी मिली चक्रवर्ती उ