पीड़ा में दिलासा देती है प्रार्थना:महेश भट्ट
एक गोरी खूबसूरत औरत झुक कर कुरान की आयतें पढती हुई मेरे चेहरे पर फूंकती है। ताड के पुराने पत्तों से मेरे ललाट पर क्रॉस बनाती है। फिर गणेश की तांबे की छोटी मूर्ति मेरे हाथों में देती है, धीमे कदमों से दरवाजे की ओर लौटती है। जाते हुए कमरे का बल्ब बुझाती है। नींद के इंतजार में उस औरत की प्रार्थनाओं से मैं सुकून और सुरक्षा महसूस करता हूं। मुश्किल वक्त की दिलासा अपनी शिया मुस्लिम मां की यह छवि मेरी यादों से कभी नहीं गई। मां ने हिंदू ब्राह्मण से गुपचुप शादी की थी। वह मदर मैरी की भी पूजा करती थी। मेरे कानों में अभी तक गणपति बप्पा मोरया, या अली मदद और आवे मारिया के बोल गूंजते हैं। जब मैं कुछ सीखने-समझने और याद करने लायक हुआ तो पाया कि मैं कहीं भी रहूं, ये ध्वनियां हमेशा साथ रहती हैं। बीमारी या भयावह पीडा के समय पूरी दुनिया में लोगों ने इन शब्दों का जाप किया है। सोचा कि क्या सचमुच इन शब्दों में राहत देने की शक्ति है। यह वह समय था, जब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। इसे विडंबना कहें कि जहां देवताओं की अधिकतम संख्या है, उसका प्रधानमंत्री घोषित रूप से नास्तिक था। उन्होंने सौगंध खाई कि...