दरअसल : पिंक फिल्म तो पसंद आई...उसकी फिलासफी?
-अजय ब्रह्मात्मज शुजीत सरकार की देखरेख में बनी ‘ पिंक ’ देश-विदेश के दर्शकों को पसंद आई है। उसके कलेक्शन से जाहिर है कि दर्शक सिनेमाघरों में जाकर ‘ पिंक ’ देख रहे हैं। दूसरे हफ्ते में भी फिल्म के प्रति दर्शकों का उत्साह बना रहा है। रितेश शाह की लिखी इस फिल्म को बांग्ला के पुरस्कृत निर्देशक अनिरूद्ध राय चौधरी ने निर्देशित किया है। सोशल मीडिया से लेकर घर-दफ्तर तक में इस फिल्म की चर्चा हो रही है। ज्यादातर लोग इस फिल्म के पक्ष में बोल रहे हैं। लेखक-निर्देशक ने बड़ी खूबसूरती से लड़कियों के प्रति बनी धारणाओं को ध्वस्त किया है। कोट्र में जिरह के दौरान बुजुर्ग वकील दीपक सहगल(अमिताभ बच्चन) के तर्कों से असहमत नहीं हुआ जा सकता। उनके तर्कों का कटाक्ष चुभता है। ‘ पिंक ’ की फिलासफी उस ‘ ना ’ पर टिकी है,जो किसी लड़की को अपनी तरह से जीने की आजादी दे सकती है। दीपक सहगल कहते हैं, ’ ‘ ना सिर्फ एक शब्द नहीं है , एक पूरा वाक्य है अपने आप में...इसे किसी व्याख्या की जरूरत नहीं है। नो मतलब नो...परिचित , फ्रेंड , गर्लफ्रेंड , सेक्स वर्कर या आपकी अपनी बीवी ही क्यों न हो...नो म...