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फिल्‍म समीक्षा : पाठशाला

हिंदी फिल्मों में शिक्षा, स्कूल, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति मुद्दा बने हुए हैं। 3 इडियट में राजकुमार हिरानी ने छात्रों पर पढ़ाई के बढ़ते दबाव को रोचक तरीके से उठाया था। अहमद खान ने पाठशाला में शिक्षा के व्यवसायीकरण का विषय चुना है। नेक इरादे के बावजूद पटकथा, अभिनय और निर्देशन की कमजोरियों की वजह से पाठशाला बेहद कमजोर फिल्म साबित होती है। बढ़ती फीस, छात्रों को रियलिटी शो में भेजने की कोशिश, छात्रों के उपयोग की चीजों की ऊंची कीमत और मैनेजमेंट के सामने विवश प्रिंसिपल ़ ़ ़ अहमद खान ने शिक्षा के व्यवसायीकरण के परिचित और सतही पहलुओं को ही घटनाओं और दृश्यों के तौर पर पेश किया है। इस दबाव के बीच अंग्रेजी शिक्षक उदयावर और स्पोर्ट्स टीचर चौहान की पहलकदमी पर सारे टीचर एकजुट होते हैं ओर वे छात्रों को असहयोग के लिए तैयार कर लेते हैं। छोटा-मोटा ड्रामा होता है। मीडिया में खबर बनती है और मुद्दा सुलझ जाता है। विषय की सतही समझ और कमजोर पटकथा फिल्म के महत्वपूर्ण विषय को भी लचर बना देती है। सारे कलाकारों ने बेमन से काम किया है। सभी कलाकारों के निकृष्ट परफार्मेस के लिए पाठशाला याद रखी जा सकती है। नाना...