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फिल्‍म समीक्षा : अब तक छप्‍पन 2

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज  शिमित अमीन की 'अब तक छप्पन' 2004 में आई थी। उस फिल्म में नाना पाटेकर ने साधु आगाशे की भूमिका निभाई थी। उस फिल्म में साधु आगाशे कहता है कि एक बार पुलिस अधिकारी हो गए तो हमेशा पुलिस अधिकारी रहते हैं। आशय यह है कि मानसिकता वैसी बन जाती है। 'अब तक छप्पन 2' की कहानी पिछली फिल्म के खत्म होने से शुरू नहीं होती है। पिछली फिल्म के पुलिस कमिश्नर प्रधान यहां भी हैं। वे साधु की ईमानदारी और निष्ठा की कद्र करते हैं। साधु पुलिस की नौकरी से निलंबित होकर गोवा में अपने इकलौते बेटे के साथ जिंदगी बिता रहे हैं। राज्य में फिर से अंडरवर्ल्ड की गतिविधियां बढ़ गई हैं। राज्य के गृह मंत्री जागीरदार की सिफारिश पर फिर से साधु आगाशे को बहाल किया जाता है। उन्हें अंडरवर्ल्ड से निबटने की पूरी छूट दी जाती है। साधु आगाशे पुराने तरीके से अंडरवर्ल्ड के अपराधियों की सफाई शुरू करते हैं। नए सिस्टम में फिर से कुछ पुलिस अधिकारी भ्रष्ट नेताओं और अपराधियों से मिले हुए हैं। सफाई करते-करते साधु आगाशे इस दुष्चक्र की तह तक पहुंचते हैं। वहां उन्हें अपराधियों की संगत दिखती है...

फिल्‍म समीक्षा : द अटैक्‍स ऑफ 26/11

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-अजय ब्रह्मात्मज -अजय ब्रह्मात्मज -अजय ब्रह्मात्‍मज  राम गोपाल वर्मा को सच्ची घटनाओं पर काल्पनिक फिल्में बनाने का नया शौक हुआ है। 'नॉट ए लव स्टोरी' में उन्होंने मुंबई की एक हत्या को सेल्यूलाइड के लिए चुना था। इस बार 26/11 की घटना को उन्होंने फिल्म का रूप दिया है। हालांकि 26 /11 की घटना को देश के दर्शकों ने टीवी पर लाइव देखा था। राम गोपाल वर्मा मानते हैं कि लाइव कवरेज और डाक्यूमेंट्री फिल्मों में फैक्ट्स होते हैं, लेकिन इमोशन और रिएक्शन नहीं होते हैं।               26/11 की ही बात करें तो गोलियां चलाते समय कसाब क्या सोच रहा था? या उसके चेहरे पर कैसे भाव थे। राम गोपाल वर्मा ने इस फिल्म में इमोशन और रिएक्शन के साथ 26/11 की घटना को पेश किया है। फिल्म की शुरुआत पुलिस कमिश्नर के बयान से होती है। उस रात की आकस्मिक स्थिति और उसके मुकाबले में मुंबई की सुरक्षा एजेंसियों की गतिविधियों के काल्पनिक दृश्यों से राम गोपाल वर्मा ने घटना की भयावहता और क्रूरता को प्रस्तुत किया है। 'द अटैक्स ऑफ 26/11' मुख्य रूप से वीटी स्टेशन, ताज होटल, लियोपोल्ड कैफे और का...

फिल्‍म समीक्षा : तुम मिलो तो सही

-अजय ब्रह्मात्‍मज  इस फिल्म को देखने की एक बड़ी वजह नाना पाटेकर और डिंपल कपाडि़या हो सकते हैं। दोनों के खूबसूरत और भावपूर्ण अभिनय ने इस फिल्म की बाकी कमियों को ढक दिया है। उनके अव्यक्त प्रेम और साहचर्य के दृश्यों उम्रदराज व्यक्तियों की भावनात्मक जरूरत जाहिर होती है। तुम मिलो तो सही ऊपरी तौर पर तीन प्रेमी युगलों की प्रेम कहानी लग सकती है, लेकिन सतह के नीचे दूसरी कुलबुलाहटें हैं। कबीर सदानंद अपनी पहली कोशिश में सफल रहते हैं। नाना पाटेकर और डिंपल कपाडि़या दो विपरीत स्वभाव के व्यक्ति हैं। दोनों अकेले हैं। नाना थोड़े अडि़यल और जिद्दी होने के साथ अंतर्मुखी और एकाकी तमिल पुरुष हैं, जबकि डिंपल मुंबई की बिंदास, बातूनी और सोशल स्वभाव की पारसी औरत हैं। संयोग से दोनों भिड़ते, मिलते और साथ होते हैं। इनके अलावा दो और जोडि़यां हैं। सुनील शेट्टी और विद्या मालवड़े के दांपत्य में पैसों और जिंदगी की छोटी प्राथमिकताओं को लेकर तनाव है, जो बड़े शहरों के युवा दंपतियों के बीच आम होता जा रहा है। अंत में सुनील को अपनी गलतियों का एहसास होता है और दोनों की जिंदगी सुगम हो जाती है। रेहान और अंजना दो भिन्न पृष्ठभूमि...