फिल्म समीक्षा : अब तक छप्पन 2
-अजय ब्रह्मात्मज शिमित अमीन की 'अब तक छप्पन' 2004 में आई थी। उस फिल्म में नाना पाटेकर ने साधु आगाशे की भूमिका निभाई थी। उस फिल्म में साधु आगाशे कहता है कि एक बार पुलिस अधिकारी हो गए तो हमेशा पुलिस अधिकारी रहते हैं। आशय यह है कि मानसिकता वैसी बन जाती है। 'अब तक छप्पन 2' की कहानी पिछली फिल्म के खत्म होने से शुरू नहीं होती है। पिछली फिल्म के पुलिस कमिश्नर प्रधान यहां भी हैं। वे साधु की ईमानदारी और निष्ठा की कद्र करते हैं। साधु पुलिस की नौकरी से निलंबित होकर गोवा में अपने इकलौते बेटे के साथ जिंदगी बिता रहे हैं। राज्य में फिर से अंडरवर्ल्ड की गतिविधियां बढ़ गई हैं। राज्य के गृह मंत्री जागीरदार की सिफारिश पर फिर से साधु आगाशे को बहाल किया जाता है। उन्हें अंडरवर्ल्ड से निबटने की पूरी छूट दी जाती है। साधु आगाशे पुराने तरीके से अंडरवर्ल्ड के अपराधियों की सफाई शुरू करते हैं। नए सिस्टम में फिर से कुछ पुलिस अधिकारी भ्रष्ट नेताओं और अपराधियों से मिले हुए हैं। सफाई करते-करते साधु आगाशे इस दुष्चक्र की तह तक पहुंचते हैं। वहां उन्हें अपराधियों की संगत दिखती है...