दोस्ती – मर्मस्पर्शी भावनाओं की कामयाबी
- अजय ब्रह्मात्मज यूं तो फिल्मकारों ने दोस्ती के रिश्ते पर एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई हैं, लेकिन इस फिल्म में अंधे और अपाहिज दोस्तों की जो मर्मस्पर्शी कहानी दिखाई गई है, वह आज भी दोस्ती के फार्मूले पर बनी दूसरी फिल्मों पर भारी पड़ती है. रामनाथ अपनी मां के साथ रहता है. कंपनी की नौकरी करते हुए उसके पिता की मौत हो जाती है. मां और बेटे को उम्मीद है कि कंपनी से मदद मिलेगी. वे लोग गरीबी में जिंदगी बसर करते हैं. मां को दिल की बीमारी है. रामनाथ प्रतिभाशाली लड़का है. पढ़ाई और खेलकूद में आगे रहता है. कंपनी से मदद न मिलने की जानकारी होने पर मां सदमे में सीढ़ी से लुढ़क जाती है. मां को बचाने की फिक्र में भागता रामनाथ एक गाड़ी से टकरा जाता है. उसकी टांग में चोट आती है और वह पैर से अपाहिज हो जाता है. अस्पताल से निकलने पर उसे अपने किराए के घर में ताला लगा दिखता है. मां गुजर चुकी है. वह अनाथ सड़क पर भटकता है. उसकी मुलाकात मोहन से होती है. मोहन अंधा है. वह अपनी दीदी मीना की खोज में गांव से आया है. दोनों एक-दूसरे का सहारा बन जाते हैं. आम तौर पर हिंदी फिल्मों में अनाथ